सोमवार, 13 मई 2019

पिघला दिया है मुझको ......


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गमक जाती हूँ
सोंधी मिट्टी सी
तेरी यादों की
शीतल फुहार से
वरना
बदगुमानियों ने मेरी
ज़र्रा ए खाक
बना दिया है मुझको.....

हटता नहीं
तेरा एहसास
एक लम्हा भी
मेरे ख़यालों से
हुआ है जादू कोई
फूँका है मंतर
या कोई मख़्फ़ी तावीज़
बंधा दिया है मुझको.....

धड़क रहा है सीने में
बन के दिल
जो शख़्स
हर लम्हा ,
वो मेरा कोई नहीं
दुनिया ने बारहा
बता दिया है मुझको ....

जमी थी बर्फ़
जज़्ब हुए
अश्क़ों की
सर्द से वजूद पर
किस तमाजते सरगोशी ने
दफ़अतन
पिघला दिया है मुझको ......

मायने:
मख़्फ़ी=अदृश्य, छुपा हुआ
बारहा-बार बार
तमाजते सरगोशी - फुसफुसाहट की गर्माहट
दफ़अतन=अचानक

10 टिप्‍पणियां:

विश्वमोहन ने कहा…

एहसासों के सरगम सज गए हर शब्द में आपकी! ज़ज़्बात अवश से तैरने लगे मन की फ़िज़ा में। वाह!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

मन की वीणा ने कहा…

उम्दा /बेहतरीन।
एहसासों को झकझोरती गहन अभिव्यक्ति।

Jyoti khare ने कहा…

वाह बहुत सुंदर
शुभकामनाएं

मुदिता ने कहा…

बहुत आभार

मुदिता ने कहा…

धन्यवाद

मुदिता ने कहा…

आपका शुक्रिया

मुदिता ने कहा…

धन्यवाद

मुदिता ने कहा…

धन्यवाद मेरी रचना को चुनने के लिए

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत ही सुन्दर...
वाह!!!