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दिल की गलियों से कोई गुज़रा नहीं था
फिर भी ये कूचा कभी सूना नहीं था .....
सारी दुनिया छोड़ के चाहा था उसको
थी मैं उसकी, वो मगर मेरा नहीं था.....
सब सवालों का था चुप ही इक जवाब
कुछ तो था उसमें जो मुझ जैसा नहीं था....
थी मैं उसकी, वो मगर मेरा नहीं था.....
सब सवालों का था चुप ही इक जवाब
कुछ तो था उसमें जो मुझ जैसा नहीं था....
इश्क़ तुमसे कुछ ज़ियादा कर लिया था
अपना कोई और तो झगड़ा नहीं था.....
वो ही वो है हर तरफ देखूँ जिधर
इश्क़ में मुझसा कोई डूबा नहीं था...
दर बदर ढूंढा किये जिसको मुसल्सल
मुझमें ही था वो कहीं खोया नहीं था.....
अपना कोई और तो झगड़ा नहीं था.....
वो ही वो है हर तरफ देखूँ जिधर
इश्क़ में मुझसा कोई डूबा नहीं था...
दर बदर ढूंढा किये जिसको मुसल्सल
मुझमें ही था वो कहीं खोया नहीं था.....
1 टिप्पणी:
वाह !
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