रविवार, 26 मई 2019

इश्क़ में मुझसा कोई डूबा नहीं था.....


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दिल की गलियों से कोई गुज़रा नहीं था
फिर भी ये कूचा कभी सूना नहीं था .....

सारी दुनिया छोड़ के चाहा था उसको
थी मैं उसकी, वो मगर मेरा नहीं था.....

सब सवालों का था चुप ही इक जवाब
कुछ तो था उसमें जो मुझ जैसा नहीं था....

इश्क़ तुमसे कुछ ज़ियादा कर लिया था
अपना कोई और तो झगड़ा नहीं था.....

वो ही वो है हर तरफ देखूँ जिधर
इश्क़ में मुझसा कोई डूबा नहीं था...

दर बदर ढूंढा किये जिसको मुसल्सल
मुझमें ही था वो कहीं खोया नहीं था.....