बुधवार, 19 दिसंबर 2018

ख़यालों का सफ़र


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होती है रफ़्तार
ख़यालों के सफ़र की
कभी बेहद तेज़
सुपर सोनिक जहाज़ सी,
कभी धीमी
ज्यूँ चली जा रही हो
कोई बैलगाड़ी
गाँव के कच्चे रस्ते पर,
अड़ जाते हैं
ख़याल भी
बैलों की तरह
देख कर
संगीन हालात
फंस जाता है कभी
किसी खड्ड में
पहिया गाड़ी का,
बड़ी मेहनत से
उस अटकाव से उबर
आगे बढ़ता है सफ़र...

अक्सर होता है सफ़र
रेलगाड़ी के मानिंद
यहाँ से वहाँ
और हम पीछे
छूटते हुए लम्हों को
ट्रेन की खिड़की से
झांकते हुए
देखने की कोशिश में
गुज़र जाते हैं
कितने ही नज़ारों  से,
होते हुए बेक़रार
मुस्तक़बिल के लिए ...

आ जाता है पड़ाव
कुछ लम्हों का
सुकुनज़दा सा कोई ,
कभी कर देता है
फिक्रमंद
गुज़रना किसी
बियाबान से ....

एक स्टेशन से
दूसरे तक
जोड़े रखती हैं
कभी यादों की
कभी तसव्वुर की
पटरियां
जिनसे गुज़रते हुए
मुस्कुरा लेते हैं खुद में
भिगो लेते हैं नैन
कभी जी लेते हैं
दिल की गहराइयों में दबी
ख़्वाहिशों को
करते हुए बगावत
हक़ीक़त से ...

ख़यालों के सफ़र की
न हो भले ही
मंज़िल कोई
मगर सफ़र के दौरान
रहते हुए होशमंद
हो कर गवाह
हर राह और पड़ाव के
पहुंचा सकता है
यह सफ़र
मंज़िल-ए-मक़सूद तक......

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

....बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति !!