शनिवार, 16 अप्रैल 2011

इक पीर उठी उर से साजन ...


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इक पीर उठी उर से साजन ,
अँखियाँ भर बरसीं ज्यूँ सावन,
जब विलग हुई तेरे भावों से,
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .......

आखर आखर में छिपा के मैं
निज भाव हृदय के बतलाऊं
गीतों में मुखरित प्रेम तेरा
पा कर फिर खुद पर इठलाऊं
है क्षणिक प्रिय ,अवसाद मेरा
बह जाता, संग अश्रु-प्लावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन

जो उमड़ घुमड़ कर आये थे
श्यामल मेघा वो रीत गए
निरभ्र नील गगन सा मन
क्षण दुविधाओं के बीत गए
कर जाती निर्मल ,शुभ्र ,स्वच्छ
बहे धार प्रीत की जब पावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .....



17 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जो उमड़ घुमड़ कर आये थे
श्यामल मेघा वो रीत गए
निरभ्र नील गगन सा मन
क्षण दुविधाओं के बीत गए
कर जाती निर्मल ,शुभ्र ,स्वच्छ
बहे धार प्रीत की जब पावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .....
waah... bahut bhawpurn abhivyakti

मनोज कुमार ने कहा…

दिल को छू लेने वाली रचना।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कर जाती निर्मल ,शुभ्र ,स्वच्छ
बहे धार प्रीत की जब पावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .

:) :) सुन्दर ...अतिसुन्दर रचना

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

रजनीश तिवारी ने कहा…

इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .....
बहुत सुंदर रचना

Anupama Tripathi ने कहा…

bahut sunder rachna ...

udaya veer singh ने कहा…

utkrisht kavy -srijan pahli bar aapko padha , sakratmak manobhav ka darshan
aabhar .

Anamikaghatak ने कहा…

उत्कृष्ट रचना

Vijuy Ronjan ने कहा…

गीतों में मुखरित प्रेम तेरा
पा कर फिर खुद पर इठलाऊं
है क्षणिक प्रिय ,अवसाद मेरा
बह जाता, संग अश्रु-प्लावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन


bahut badhiya...man gungunane ko karne laga...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

भावनाओं से ओतप्रोत मर्मस्पर्शी रचना...

आनंद ने कहा…

आखर आखर में छिपा के मैं
निज भाव हृदय के बतलाऊं
गीतों में मुखरित प्रेम तेरा
पा कर फिर खुद पर इठलाऊं
है क्षणिक प्रिय ,अवसाद मेरा
बह जाता, संग अश्रु-प्लावन....
..
आदरणीय मुदिता जी, पहली बार आपकी लेखनी के प्रवाह को महसूस करने का सौभाग्य मिल रहा है...मन मुदित हो गया ....अनुशरणकर्ता बन कर जा रहा हूँ.....ताकि ये भाव प्रवाह फिर से छूट ना जाये.

Anita ने कहा…

सुंदर मधुर भाव व सरल कर्णप्रिय शब्दों से सजी रचना के लिये बधाई !

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

पीर को बखूबी पिरोया गया है।

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब,

हिंदी कविता का उत्कृष्ट रूप है ये पोस्ट.....प्रशंसनीय |

मुदिता ने कहा…

आप सभी पाठकों का बहुत बहुत आभार ..मेरी रचना को बहुत मान मिला

monali ने कहा…

Loved dis lovely piece of poetry... aapke chune hue shabd is kavvita ko magical bana dete hain... m blessed to find dis blog trhu charcha manch.. :)

Amrita Tanmay ने कहा…

मुझे भी स्वयं के भीतर गुजरने सा लगता है जब आध्यात्म की इस उंचाई पर किसी को पाती हूँ.पीर को बखूबी पिरोया गया ...
मैं किस तरह आपका आभार प्रकट करूँ ? बहुत-बहुत धन्यवाद