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इक पीर उठी उर से साजन ,
अँखियाँ भर बरसीं ज्यूँ सावन,
जब विलग हुई तेरे भावों से,
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .......
आखर आखर में छिपा के मैं
निज भाव हृदय के बतलाऊं
गीतों में मुखरित प्रेम तेरा
पा कर फिर खुद पर इठलाऊं
है क्षणिक प्रिय ,अवसाद मेरा
बह जाता, संग अश्रु-प्लावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन
जो उमड़ घुमड़ कर आये थे
श्यामल मेघा वो रीत गए
निरभ्र नील गगन सा मन
क्षण दुविधाओं के बीत गए
कर जाती निर्मल ,शुभ्र ,स्वच्छ
बहे धार प्रीत की जब पावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .....
इक पीर उठी उर से साजन ,
अँखियाँ भर बरसीं ज्यूँ सावन,
जब विलग हुई तेरे भावों से,
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .......
आखर आखर में छिपा के मैं
निज भाव हृदय के बतलाऊं
गीतों में मुखरित प्रेम तेरा
पा कर फिर खुद पर इठलाऊं
है क्षणिक प्रिय ,अवसाद मेरा
बह जाता, संग अश्रु-प्लावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन
जो उमड़ घुमड़ कर आये थे
श्यामल मेघा वो रीत गए
निरभ्र नील गगन सा मन
क्षण दुविधाओं के बीत गए
कर जाती निर्मल ,शुभ्र ,स्वच्छ
बहे धार प्रीत की जब पावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .....
17 टिप्पणियां:
जो उमड़ घुमड़ कर आये थे
श्यामल मेघा वो रीत गए
निरभ्र नील गगन सा मन
क्षण दुविधाओं के बीत गए
कर जाती निर्मल ,शुभ्र ,स्वच्छ
बहे धार प्रीत की जब पावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .....
waah... bahut bhawpurn abhivyakti
दिल को छू लेने वाली रचना।
कर जाती निर्मल ,शुभ्र ,स्वच्छ
बहे धार प्रीत की जब पावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .
:) :) सुन्दर ...अतिसुन्दर रचना
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .....
बहुत सुंदर रचना
bahut sunder rachna ...
utkrisht kavy -srijan pahli bar aapko padha , sakratmak manobhav ka darshan
aabhar .
उत्कृष्ट रचना
गीतों में मुखरित प्रेम तेरा
पा कर फिर खुद पर इठलाऊं
है क्षणिक प्रिय ,अवसाद मेरा
बह जाता, संग अश्रु-प्लावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन
bahut badhiya...man gungunane ko karne laga...
भावनाओं से ओतप्रोत मर्मस्पर्शी रचना...
आखर आखर में छिपा के मैं
निज भाव हृदय के बतलाऊं
गीतों में मुखरित प्रेम तेरा
पा कर फिर खुद पर इठलाऊं
है क्षणिक प्रिय ,अवसाद मेरा
बह जाता, संग अश्रु-प्लावन....
..
आदरणीय मुदिता जी, पहली बार आपकी लेखनी के प्रवाह को महसूस करने का सौभाग्य मिल रहा है...मन मुदित हो गया ....अनुशरणकर्ता बन कर जा रहा हूँ.....ताकि ये भाव प्रवाह फिर से छूट ना जाये.
सुंदर मधुर भाव व सरल कर्णप्रिय शब्दों से सजी रचना के लिये बधाई !
पीर को बखूबी पिरोया गया है।
बहुत खूब,
हिंदी कविता का उत्कृष्ट रूप है ये पोस्ट.....प्रशंसनीय |
आप सभी पाठकों का बहुत बहुत आभार ..मेरी रचना को बहुत मान मिला
Loved dis lovely piece of poetry... aapke chune hue shabd is kavvita ko magical bana dete hain... m blessed to find dis blog trhu charcha manch.. :)
मुझे भी स्वयं के भीतर गुजरने सा लगता है जब आध्यात्म की इस उंचाई पर किसी को पाती हूँ.पीर को बखूबी पिरोया गया ...
मैं किस तरह आपका आभार प्रकट करूँ ? बहुत-बहुत धन्यवाद
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