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सिमट आते हैं
कई ख्वाब
मुंदी
पलकों में
मेरी ...
थिरक जाती है
लबों पर हंसी
जी कर उन्हें
पलकों के तले..
सांसें भी
महक उठती हैं
रात की रानी
की तरह...
ए शब् !
ठहर जा अभी ..
ज़रा
कुछ वक्त तो दे
जीने को मुझे
'मैं'
हो कर..
होना है
पराया
मुझे
खुद से ही
होते ही सहर
संग
खुली पलकों के ....
8 टिप्पणियां:
ज़रा कुछ वक्त तो दे जीने को मुझे 'मैं'हो कर..होना है पराया मुझे खुद से हीहोते ही सहरसंग खुली पलकों के ....
एक पल खुद के लिए ......
बहुत सुंदर भाव .......
कोमल रचना .
कोमल भावो का सुन्दर समन्वय्।
सुन्दर भाव ...खुली पलकों भी ख्वाब देखो ...सहर होने का डर नहीं रहेगा :):)
सुन्दर पोस्ट.....ज़रा कुछ वक़्त तो दे जीने को मुझे.....शानदार |
ए शब् !
ठहर जा अभी ..
ज़रा कुछ वक्त तो दे
जीने को मुझे
बहुत उम्दा भाव.
कभी कभी खुली पलकों से भी देख लिया करें सपने.
'मैं'हो कर..होना है पराया मुझे खुद से हीहोते ही सहरसंग खुली पलकों के ....
बेहतरीन रचना ! बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
ज़रा कुछ वक्त तो दे जीने को मुझे 'मैं'हो कर..होना है पराया मुझे खुद से हीहोते ही सहरसंग खुली पलकों के ....
बहुत ख़ूबसूरत कोमल भाव...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण ...आपको सारी दुनिया से अलग करता है..मन करता है की आपके मन में चुपके से घुस के सारी खुशी जीलूँ
अन्यथा न लीजियेगा !
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