शनिवार, 2 अप्रैल 2011

तुमसे है .....

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खिली जो
मेरे होठों पे ,
वो मुस्कान
तुम से है...
नमी पलकों पे
आ ठहरी ,
बनी अनजान
तुम से है ..

लिखे हैं
जो भी नगमें,
या कि नज्में ,
या कही गजलें
कि सबमें
ज़िक्र बस तेरा ,
वो हर उन्वान
तुमसे है ...

छुपे हो ,
आज तुम,
नज़रों से मेरी ,
पर
समझ लो ये
मेरी हर सांस की,
हर आस की,
पहचान
तुमसे है..

तुम्हारी बेरुखी
न सोख दे
बहता हुआ
दरिया ,
कि बढ़ के
ले लो बाहों में
यही अरमान
तुमसे है ....

तेरी हसरत में
भूले हम
खुदा को
और
खुद को भी,
हसीं रातें ,
महकते दिन ,
मेरा जहान
तुमसे है .....




19 टिप्‍पणियां:

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhn mudritaa ji bhtrin prstuti ke liyen bdhaai . akhtar khan akela kota rajsthan

रश्मि प्रभा... ने कहा…

लिखे हैं
जो भी नगमें,
या कि नज्में ,
या कही गजलें
कि सबमें
ज़िक्र बस तेरा ,
वो हर उन्वान
तुमसे है ...
bahut hi khoobsurat ehsaas

Anupama Tripathi ने कहा…

कितना समर्पण है ...!!
जैसे -सूरदास की कारी कमरिया
चढ़े न दूजो रंग -
बहुत सुंदर भावनाओं की अभिव्यक्ति -

सदा ने कहा…

वाह ....बहुत खूब कहा है ...।

vandana gupta ने कहा…

वाह वाह प्रेममयी सुन्दर रचना के लिये बधाई।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:):) ..जुदाई के वक्त शायद ऐसा ही एहसास होता हो :):)

पूर्ण समर्पण से युक्त भाव ...बहुत प्यारी रचना

बेनामी ने कहा…

प्यार के रस में डूबी शानदार पोस्ट.....

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

"तेरी हसरत में

भूले हम

खुदा को

और

खुद को भी

हसीं रातें

महकते दिन

मेरा जहान

तुमसे है....."

**************

वाह .......भाव और प्रस्तुति दोनों अति सुन्दर

विशाल ने कहा…

तुम हो ,
तो मैं हूँ,
तुम हो,
तो सब है.
तुम हो,
तो जहां है,
तुम हो ,
तो रब है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.blogspot.com/

Udan Tashtari ने कहा…

ख़ूबसूरत रचना

अजय कुमार ने कहा…

प्रेम और समर्पण की सुंदर अभिव्यक्ति

मनोज कुमार ने कहा…

शुरु में तो लगा कि यह नज़्म है।
बाद मे ध्यान से देखा तो ग़ज़ल लगी। ऐसे फॉर्मेट में क्यों लिखा है आपने।

खिली जो मेरे होठों पे, वो मुस्कान तुम से है।
नमी पलकों पे आ ठहरी, बनी अनजान तुम से है।
कमाल क फ़्लो और सुंदर कोमल अहसास से भरी ग़ज़ल। बेहतरीन, लाजवाब!!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

रचना सुन्दर भावों से लबरेज़.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Kitni ajeeb she hai ye pyaar ... sabhi kuch unse/unke naam ho jaata hai ...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

prem bhara ahsaas:)

shikha varshney ने कहा…

बहुत खूबसूरत अहसास खूबसूरत अल्फाजों में.समर्पण की परकाष्ठा
बहुत खूब मुदिता.

मुदिता ने कहा…

अख्तर साहब ,रश्मि जी ,अनुपमा जी ,सदा जी ,वंदना जी, दीदी,इमरान जी ,सुरेन्द्र जी ,विशाल जी , समीर जी ,अजय जी , मनोज जी ,कुंवर कुसुमेश जी ,दिगम्बर जी, मुकेश जी और शिखा आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ ..

@ मनोज जी ,
आपने सही पहचाना ..जब इसको लिखा था तब मैंने गज़ल के फोर्मेट में ही लिखा था .लेकिन गज़ल की तकनीक का बहुत ज्ञान नहीं मुझे .. रदीफ काफिया तो समझने लगी हूँ अब किन्तु बहर अभी भी कई कोस दूर लगती है मुझे ..इसलिए लगा कि कोई रिस्क न लेते हुए इसको गज़ल के रूप में न लिख कर अलग ही फॉर्मेट दिया जाए तो सही रहेगा ..:) वैसे यह नज़्म ही है जो गजल की तरह लिखी गयी है क्यूंकि मैंने जितना सुना और समझा है कि नज़्म वह होती है जिसमें एक ही भाव को ले कर लिखा जाता है जबकि गज़ल का हर शेर अलग अलग और अपने आप में मुक्कमल होता है.. और इस पूरी रचना में' तुमसे है ' का ही भाव है.. अभी सीख रही हूँ ..विधाओं के बारे में जानकारी नहीं बस भावों को शब्दों में बाँध लेती हूँ .. साहित्य के जानकार जिस विधा में समझना चाहें समझ लें और मुझे भी बता दें कि किस विधा में रचना लिखी है मैंने :) तो सीखने में गति मिलेगी

आपके प्रोत्साहन का बहुत शुक्रिया

सादर
मुदिता

Vinesh ने कहा…

हम किसी वांछा और उदेश्य से क्या करते हैं इस पर फल निर्भर करता है...लेकिन समर्पण कभी भी किया नहीं जाता...होता है...कर्ता भाव तिरोहित..और ऐसे में प्रेम मैत्री बन कर अनुकम्पा और प्रार्थना के रूप पा लेता है...करुना घटित होती है...और ऐसी अवस्था को तुरीय अवस्था कहा जा सकता है...कविता इसका 'रोड मेप' है....
बहुत गहरी रचना है....अच्छा लगा पढ़ना और उतरना.