छुअन से तेरी नजरो की,दहक उठे मेरे , रुख़सार जैसे
हया से झुक गयी पलकें ,किया बेलफ्ज़ हो, इज़हार जैसे
थी किसकी हसरतें जाने,अज़ल से मुन्तजिर दिल में
मुक्कमल हो गया ,आने से तेरे, इंतज़ार जैसे
तब्बस्सुम आज हैं लब पर,अदाओं में भी शोखी है
था मुरझाया मुद्दतों दिल, रहा था, सोगवार जैसे
बुझाई है घटा बन के ही मैंने, तिश्नगी सबकी
भिगो दो अब तुम्ही मुझको,हो कोई , आबशार जैसे
समझ लो ना यूँही जानां ,कहानी झुकती नज़रों की
कि दिल करता है हर लम्हा ,उसी का , इश्तिहार जैसे
4 टिप्पणियां:
मुदिता जी,
आपके ब्लॉग पर ग़ज़ल पड़कर बहुत अच्छा लगा.....बहुत खूब .....
कभी हमारी दहलीज़ पर भी तशरीफ़ लायें -
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Hi..
Karen kaise hum bhavon ka..
Karen ezhaar hum kaise..
Kahen kis se hum haal-e-dil..
Kahen gam-e-khumar hum kaise..
Padhi jab bhi gazal teri..
Main usme doobkar utra..
Ashar tere sabhi dil ko..
Ho jaise chhookar hai guzra..
Sundar gazal..
Deepak..
बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम है इस रचना में ।
khubsurat lafzo ko sahej kar ek pyari si gajal bana di aapne...:)
badhai...!
aaj pahli baar aaya, laga barabar aana parega...!
kabhi hamare blog pe dustak den, hame achchha lagega...
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