बुधवार, 30 जून 2010

आब-ए-वफ़ा...

पिघलता है
जब
तुमसा
हिम खंड,
मोहब्बत की
तपिश से

उफन उठता है
एहसासों से
भरा,
मेरे दिल का
दरिया

हो उठता है
हर ज़र्रा,
हरा भरा,
और पुरनूर

जब होता है
वाबस्ता,
उस
आब-ए- वफ़ा
से .....

2 टिप्‍पणियां:

Deepak ने कहा…

Hi..

Ye duniya bhi hansi lagti..
Koi jo chahta 'Deepak'
Muhabbat ki tapish se hi..
Hain aate rang jeevan main..

Sundar kavita..

Deepak..

Avinash Chandra ने कहा…

:)