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प्रभुता स्वयं की
सिद्ध करने को
हीन कहा
दूजे को तूने
गिरा किसी को
सोचा ,पहुंचूं ,
आस्मां को
लगूं मैं छूने
पर उत्थान
स्वयं
का होता
जब शक्ति
होती
निज मन में
उपक्रम हो
आगे बढ़ने का
सजग
दृष्टि से
इस
जीवन में
सिद्ध करने को
हीन कहा
दूजे को तूने
गिरा किसी को
सोचा ,पहुंचूं ,
आस्मां को
लगूं मैं छूने
पर उत्थान
स्वयं
का होता
जब शक्ति
होती
निज मन में
उपक्रम हो
आगे बढ़ने का
सजग
दृष्टि से
इस
जीवन में
4 टिप्पणियां:
अच्छी सीख देती रचना....
मंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
http://charchamanch.blogspot.com/
satya vachan...bikul sahi
बहुत बढि़या!
सच कहा ... उपर उठने की लिए दूसरे को दबाना हीनता है ....
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