मन के भावों को यथावत लिख देने के लिए और संचित करने के लिए इस ब्लॉग की शुरुआत हुई...स्वयं की खोज की यात्रा में मिला एक बेहतरीन पड़ाव है यह..
नमस्कार जी...जिसे बेगाना कोई समझे,उस से प्यार न हो सकता..जिसको अपना माने कोई..प्यार उसी से हो सकता...अगर फिसल भी गए कभी तो,आकर वही संभालेगा ...गिरने न देगा वो तुमको..पलकों पे वो बिठा लेगा .हमेशा की तरह सुन्दर कविता...दीपक शुक्ल...
सूखे आसुओं से भीगी पगडण्डी पर फिसलन - जबाब नहीं
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2 टिप्पणियां:
नमस्कार जी...
जिसे बेगाना कोई समझे,
उस से प्यार न हो सकता..
जिसको अपना माने कोई..
प्यार उसी से हो सकता...
अगर फिसल भी गए कभी तो,
आकर वही संभालेगा ...
गिरने न देगा वो तुमको..
पलकों पे वो बिठा लेगा .
हमेशा की तरह सुन्दर कविता...
दीपक शुक्ल...
सूखे आसुओं से भीगी पगडण्डी पर फिसलन - जबाब नहीं
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