१)
निपुण
संगतराश
उकेर
देता है
अक्स
पत्थर में
खूबसूरती
का ....
सत्व
कर सके
प्रवाहित
बुत में
ऐसी
निपुणता
उसमें
कहाँ ...!!
=================
२)
धरती पर
टिकते
नहीं हैं
पाँव मेरे ..
शब्दों से
परे
बूझते हो
तुम
भाव मेरे..
भाषा
स्पंदनो की
जानते हो..
बिन कहे
बात मेरी
मानते हो...
स्वयं में
सम्पूर्ण
एक गुण
हो तुम..
कैसे कहूँ
किसमें
निपुण
हो तुम .....
निपुण
संगतराश
उकेर
देता है
अक्स
पत्थर में
खूबसूरती
का ....
सत्व
कर सके
प्रवाहित
बुत में
ऐसी
निपुणता
उसमें
कहाँ ...!!
=================
२)
धरती पर
टिकते
नहीं हैं
पाँव मेरे ..
शब्दों से
परे
बूझते हो
तुम
भाव मेरे..
भाषा
स्पंदनो की
जानते हो..
बिन कहे
बात मेरी
मानते हो...
स्वयं में
सम्पूर्ण
एक गुण
हो तुम..
कैसे कहूँ
किसमें
निपुण
हो तुम .....
3 टिप्पणियां:
nice
bahut hi behtareen rachna..
yun hi likhte rahein....
Hi..
Jo jaanta hai
bhav tere, bin kahe,
jo sunta hai,
har baat, tere bin kahe,
jo jaane har umang,
tere man ki..
Jo maane tujhe..
Aas jeevan ki..
Jo tere tarashi hue but ka satv hai..
Jo tere hruday ke spandan ka tatv hai..
Jo teri muskaan ka karan hai..
Wo har prakar se
nipun hai..
Wohi sahi mayanon main nipun hai..
DEEPAK..
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