अनजान राहों पे खड़ी
देख रही हूँ कारवाँ
लम्हों का
कुछ नन्हे मुन्ने
कुछ अल्हड़
कुछ परिपक्व
और कुछ बुजुर्ग से
हर लम्हा अपने में पूर्ण
देख कर सोचती हूँ
कौन सा है वो
मुख्तसर सा लम्हा
जो छम से आ गिरेगा
मेरी गोद में
और खिल जाऊंगी मैं
उस एक लम्हे के
अपना होने के एहसास से
पालूंगी पोसूँगी
जी लूँगी उसके बचपन में
अपना बचपन
फिर यौवन उस लम्हे का
भिगो देगा मेरा तन मन
और फिर होगा वो परिपक्व
सिखाता हुआ मुझे
बाहर आना इन
मेरे तेरे के भावों से
क्यूँ जी नहीं लेती मैं
उन सब लम्हों को
जो गुज़र रहे हैं
हंसते मुस्कुराते हुए
मेरी नज़रों के आगे से...
उस एक मुख्तसर से लम्हे
के इंतेज़ार में
बिछुड़ जाती हूँ
उस कारवाँ से
जिसकी राह भी मैं
और शायद
मंज़िल भी मैं....
10 टिप्पणियां:
क्यूँ जी नहीं लेती मैं
उन सब लम्हों को
जो गुज़र रहे हैं
हंसते मुस्कुराते हुए
मेरी नज़रों के आगे से...
बहुत मासूम सवाल किया है आपने खुद से
सुन्दर कविता
वीनस केसरी
khubsurat kavita hai.Bahut pasand aayi.
Navnit Nirav
"उस एक मुख्तसर से लम्हे
के इंतेज़ार में
बिछुड़ जाती हूँ
उस कारवाँ से
जिसकी राह भी मैं
और शायद
मंज़िल भी मैं...."
kya baat hai ..
bahut khoob
behad sundar abhivyakti
meri shubhkamnayen
waah!
waah!
waah!
bahut badhai
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
har lamhe ko jinda dili se jeena hee asli jeena hai. lekin......narayan narayan
Nice poetry on fight with Emotions, Reality and of course You.
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है । लिखते रहीये हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
मासूम अभिव्यक्ति...
सुस्वागतम्...
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