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दुक्खों का एहसास कराती
कुछ नन्ही मासूम उम्मीदें
रिश्तों को हैराँ कर जाती
अनजानी बेनाम उम्मीदें ...
अपने मन का चाहा क्या
होता है दूजे हाथ सदा
बंधन में बस बांधें रखती
परिभाषित झूठी उम्मीदें
अहम् तुम्हारा आड़े आता
प्रेम की मीठी अभिव्यक्ति में
सूखे पात सी फिर झर जाती
वर्षा पर निर्भर उम्मीदें
चेहरा लगता कोई पराया
आँखें लगती सूनी सूनी
वीरानी सी है छा जाती
पूर्ण ना होती जब उम्मीदें
सच को झुठला झुठला जाती
भ्रम में जकड़ी कुछ उम्मीदें
निज से जब पहचान है होती
बंधन क्षीण हैं होने लगते
कम से कमतर होती जाती
अपनों से बेजान उम्मीदें
लौट के आना निज की जानिब
जीवन का है लक्ष्य यही
क्यूँ फिर उलझा उलझा जाती
तुझको ये बेकार उम्मीदें .......
दुक्खों का एहसास कराती
कुछ नन्ही मासूम उम्मीदें
रिश्तों को हैराँ कर जाती
अनजानी बेनाम उम्मीदें ...
अपने मन का चाहा क्या
होता है दूजे हाथ सदा
बंधन में बस बांधें रखती
परिभाषित झूठी उम्मीदें
अहम् तुम्हारा आड़े आता
प्रेम की मीठी अभिव्यक्ति में
सूखे पात सी फिर झर जाती
वर्षा पर निर्भर उम्मीदें
चेहरा लगता कोई पराया
आँखें लगती सूनी सूनी
वीरानी सी है छा जाती
पूर्ण ना होती जब उम्मीदें
प्रतिबिम्ब पराये नयनों में
कब होता निज के भावों कासच को झुठला झुठला जाती
भ्रम में जकड़ी कुछ उम्मीदें
निज से जब पहचान है होती
बंधन क्षीण हैं होने लगते
कम से कमतर होती जाती
अपनों से बेजान उम्मीदें
लौट के आना निज की जानिब
जीवन का है लक्ष्य यही
क्यूँ फिर उलझा उलझा जाती
तुझको ये बेकार उम्मीदें .......
2 टिप्पणियां:
बहुत गहराई से लिखा है आपने....दिल को छु गयी...
बहुत खूबसूरती से उम्मीदों से हिने वाली व्यथा को लिखा है ..
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