वो जाते जाते तेरा ,
ठिठक कर यूँ ही रुक जाना
निगाहों से गुज़र कर ,
रूह तक मेरी चले आना
पिघलना बाहों में मेरी ,
मुझे संग खुद के पिघलाना
डुबो कर इश्क में खुद को ,
उसी शिद्दत से खो जाना
ना आगत का ,ना था गुज़रे
किन्ही लम्हों का जो हासिल
वही इक लम्हा था तुझ में ,
उसी को मुझ में जी जाना
3 टिप्पणियां:
सुन्दर रूमानी रचना
वही एक लम्हा था तुझ में ,
उसी को मुझ में जी जाना
बहुत खूब
डुबो कर इश्क में खुद को ,
उसी शिद्दत से खो जाना
बहुत खूब...
रूमानी अहसास से लबरेज़ रचना
बहुत खूबसूरती से लिखा है... मुदिता जी
बेहद सुंदर मनोभावों की प्रस्तुति ......
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