गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

लम्हों में.....

वो जाते जाते तेरा ,
ठिठक कर यूँ ही रुक जाना
निगाहों से गुज़र कर ,
रूह तक मेरी चले आना
पिघलना बाहों में मेरी ,
मुझे संग खुद के पिघलाना
डुबो कर इश्क में खुद को ,
उसी शिद्दत से खो जाना
ना आगत का ,ना था गुज़रे
किन्ही लम्हों का जो हासिल
वही इक लम्हा था तुझ में ,
उसी को मुझ में जी जाना

3 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

सुन्दर रूमानी रचना

वही एक लम्हा था तुझ में ,
उसी को मुझ में जी जाना

बहुत खूब

rashmi ravija ने कहा…

डुबो कर इश्क में खुद को ,
उसी शिद्दत से खो जाना
बहुत खूब...
रूमानी अहसास से लबरेज़ रचना

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत खूबसूरती से लिखा है... मुदिता जी
बेहद सुंदर मनोभावों की प्रस्तुति ......