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कर रही है खुशगवार
रातरानी की यह मादक महक
मुझको...
लदी हुई हैं शाखें
कोमल उजले सफेद फूलों से,
खिल उठते हैं हममिजाज़ मौसम में
गुंचे गुलों के
बिना किसी इंतजार
बिना किसी उम्मीद
बिना इस सोच के
कि इस खुशबू को
कोई महसूसेगा या नहीं,
सार्थकता है 'होने' की
बस खिलने
और सुगंध बिखेरने में ही,
होते होंगे बहुतेरे
जो चले जाते हैं अनछुए से
गमकती हुई रातरानी के वजूद से
मगर नहीं होता मायूस
कोई बूटा
नहीं रोकता
खिलने से फूलों को
ना ही कहता है
उन बेहिस लोगों से
कि रुको देखो
कितना लदा हूँ मैं फूलों से
महसूस करो ना तुम
मेरी खुशबू को ,
कैसे कर सकते हो तुम
नज़रअंदाज़ मेरी मौजूदगी की
लेकिन 'होना' उसका
नहीं है निर्भर किसी पर भी
वो तो है खुश ख़ुद की मौज में
नहीं करता अपेक्षा
किसी की चाहत या तारीफ की ,
कर रहा है सराबोर
फ़िज़ा को अपनी खुशबू से,
जो महसूस करे
करम उसपे मौला का
ना कर सके तो
बदनसीबी उसकी....
बिना इस सोच के
कि इस खुशबू को
कोई महसूसेगा या नहीं,
सार्थकता है 'होने' की
बस खिलने
और सुगंध बिखेरने में ही,
होते होंगे बहुतेरे
जो चले जाते हैं अनछुए से
गमकती हुई रातरानी के वजूद से
मगर नहीं होता मायूस
कोई बूटा
नहीं रोकता
खिलने से फूलों को
ना ही कहता है
उन बेहिस लोगों से
कि रुको देखो
कितना लदा हूँ मैं फूलों से
महसूस करो ना तुम
मेरी खुशबू को ,
कैसे कर सकते हो तुम
नज़रअंदाज़ मेरी मौजूदगी की
लेकिन 'होना' उसका
नहीं है निर्भर किसी पर भी
वो तो है खुश ख़ुद की मौज में
नहीं करता अपेक्षा
किसी की चाहत या तारीफ की ,
कर रहा है सराबोर
फ़िज़ा को अपनी खुशबू से,
जो महसूस करे
करम उसपे मौला का
ना कर सके तो
बदनसीबी उसकी....