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निगाह मिले न मिले, इज़हार तो है
लब खुले न खुले , इक़रार तो है....
सजा के बैठे हैं ,दिल के चमन को
गुल खिले न खिले ,इंतज़ार तो है....
समा गयी रूहें ,बिछोह कैसा अब
हिज्र टले न टले , क़रार तो है ....
फुर्सतें कब उलझनों में दुनिया की
वक़्त मिले न मिले,इख़्तियार तो है....
मुक़र्रर संग अपना ,है रज़ा इलाही की
सच खुले न खुले , एतबार तो है....
मुक़र्रर - निश्चित