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थोड़ी है ज़िन्दगानी
पुरजोश है जीना
छोटे छोटे घूंटों से,
जीवन को है पीना ..
लौटा भी सकेगा,
फिर क्या ये ज़माना,
वक्त इसने जो हमारा
जिस तरहा है छीना ?..
मावस की तीरगी में
महताब जल्वाआरा ,
रुख-ए-रोशन पे ज़रा देखो
परदा है बहोत झीना....
शोखी-ए-शबाब गुल पे
महकी सी फिजाएं
वस्ल का ये मौसम
लगता है भीना-भीना ....
ठहरी है नज़र जबसे
मदहोश हुए ऐसे
रग रग में तो हमारे
बहे सागर औ' मीना ...
थोड़ी है ज़िन्दगानी
पुरजोश है जीना
छोटे छोटे घूंटों से,
जीवन को है पीना ..
लौटा भी सकेगा,
फिर क्या ये ज़माना,
वक्त इसने जो हमारा
जिस तरहा है छीना ?..
मावस की तीरगी में
महताब जल्वाआरा ,
रुख-ए-रोशन पे ज़रा देखो
परदा है बहोत झीना....
शोखी-ए-शबाब गुल पे
महकी सी फिजाएं
वस्ल का ये मौसम
लगता है भीना-भीना ....
ठहरी है नज़र जबसे
मदहोश हुए ऐसे
रग रग में तो हमारे
बहे सागर औ' मीना ...