इज़हारे-इश्क नहीं आसाँ,दिल का ये फ़साना है
जज़्बों को ज़ुबां दे कर , नज़रों से सुनाना है ...
पल पल का पता पूछे,मुझसे ये तेरी आँखें
हर लम्हा है तू मुझमें, बाकी क्या बताना है
वो ख्वाब जो देखा है,हमने खुली आँखों से
दुनिया की निगाहों से, पलकों में छुपाना है
खिल उठते हैं गुल हर सूँ,एक तेरे तब्बसुम पे
हर शै में मोहब्बत को, इस तरह सजाना है
छू छू के तुझे आये,जो महकी सबा मुझ तक
खुशबु को तेरी जानां , तन मन में बसाना है..
तू मैं हूँ की मैं तू है, क्या फर्क रहे जानम
रूहों को मिलाने का , ये जिस्म बहाना है
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izhare -ishq nahin asaan,dil ka ye fasana hai
jazbon ko zuban de kar,nazron se sunana hai
pal pal ka pata poochhe,mujhe ye teri aankhein
har lamha hai tu mujhmein,baki kya batana hai
wo khwab jo dkeha hai,humne khuli aankhon se
duniya ki nigahon se,palkon mein chhupana hai
khil uthte hain gul har soon,ik tere tabbasum pe
har shai mein mohabbat ko,is tarah sajana hai
chhoo chhoo ke tujhe aaye,jo mehki saba mujh tak
khushbu ko teri jana,tan man mein basana hai
tu main hun ki main tu hai, kya farak rahe janam
roohon ko milane ka ,ye jism bahana hai ......
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
शनिवार, 19 सितंबर 2009
जज्बा-ए-सफ़र
हवाओं के तेवर से हो बेखबर
जलाऊं शमा मैं हर इक रहगुज़र
गिला कोई नहीं ,ना है जो हाथ हाथों में
मेरे जज्बों में शामिल है तेरा जज़्बा-ए-सफ़र
अँधेरे रात के अब कैसे भटका पायेंगे मुझको
बनी है हिम्मत-ए-रूह मेरे हिस्से की सहर
इश्क बेलफ्ज़ बहता है दिलों के दरमियाँ
गुफ़्तगू करती है , तेरी नज़र मेरी नज़र
छुपा सकते नहीं जज़्बात दिल के हमनवा
फ़ना हो जाता है वो शख्स, रहे जो बेख्याली में
होशमंदों पे होता है मोहब्बत का अलहदा असर.
जलाऊं शमा मैं हर इक रहगुज़र
गिला कोई नहीं ,ना है जो हाथ हाथों में
मेरे जज्बों में शामिल है तेरा जज़्बा-ए-सफ़र
अँधेरे रात के अब कैसे भटका पायेंगे मुझको
बनी है हिम्मत-ए-रूह मेरे हिस्से की सहर
इश्क बेलफ्ज़ बहता है दिलों के दरमियाँ
गुफ़्तगू करती है , तेरी नज़र मेरी नज़र
छुपा सकते नहीं जज़्बात दिल के हमनवा
निगाहें सुन ही लेती हैं बयां को इस कदर
फ़ना हो जाता है वो शख्स, रहे जो बेख्याली में
होशमंदों पे होता है मोहब्बत का अलहदा असर.
रविवार, 13 सितंबर 2009
कहानी दो बीजों की
सुनो कहानी दो बीजों की
एक ही वृक्ष से जन्मे थे जो
जीवन संभव दोनों में था
जिसको जीने पनपे थे वो
एक ले गयी पवन उड़ा कर
दूजा इतराया घर पा कर
नेह मिलेगा मुझको वांछित
पा जाऊंगा अपना इच्छित
परिस्थिति जो भी हुई उपलब्ध
दोनों के अपने प्रारब्ध
पहला पोषित हुआ प्राकृतिक
दूजा रहा असीम सुरक्षित
जब चाहे वो सींचा जाना
करे निराई मालिक अनजाना
बंध गयी दूजे हाथ ज़िन्दगी
चाहे पीना हो या खाना
कभी अति वृष्टि कभी सूखे से
अंतस -सत्व वो खिल न पाया
फूटे अंकुर उससे पहले
जीवन अन्दर ही कुम्हलाया
मिला सतत प्राकृतिक पोषण
प्रथम बीज की सम्भावना को
पा कर अवसर अंत:ज्ञान के
किया विकसित प्रभावना को
नमी,ऊष्मा ,पोषण अनुकूल
मिलते ही खिल गया वो फूल
अंतस की खुशबू से उसकी
महकी रूहें जन-मानस की
दिया ब्रह्म ने उसको जो भी
हुआ प्रस्फुटित अंतस का तत्व
प्राकृतिक और सजग सहज है
जीवन रस का यही है सत्व
एक ही वृक्ष से जन्मे थे जो
जीवन संभव दोनों में था
जिसको जीने पनपे थे वो
एक ले गयी पवन उड़ा कर
दूजा इतराया घर पा कर
नेह मिलेगा मुझको वांछित
पा जाऊंगा अपना इच्छित
परिस्थिति जो भी हुई उपलब्ध
दोनों के अपने प्रारब्ध
पहला पोषित हुआ प्राकृतिक
दूजा रहा असीम सुरक्षित
जब चाहे वो सींचा जाना
करे निराई मालिक अनजाना
बंध गयी दूजे हाथ ज़िन्दगी
चाहे पीना हो या खाना
कभी अति वृष्टि कभी सूखे से
अंतस -सत्व वो खिल न पाया
फूटे अंकुर उससे पहले
जीवन अन्दर ही कुम्हलाया
मिला सतत प्राकृतिक पोषण
प्रथम बीज की सम्भावना को
पा कर अवसर अंत:ज्ञान के
किया विकसित प्रभावना को
नमी,ऊष्मा ,पोषण अनुकूल
मिलते ही खिल गया वो फूल
अंतस की खुशबू से उसकी
महकी रूहें जन-मानस की
दिया ब्रह्म ने उसको जो भी
हुआ प्रस्फुटित अंतस का तत्व
प्राकृतिक और सजग सहज है
जीवन रस का यही है सत्व
शनिवार, 12 सितंबर 2009
बयां है ये.......
आँखों से गिरे मोती , जज्बों की ज़ुबां है ये
पलकों में जो पोशीदा , सपनो का बयां है ये
ख्वाबों का बसाया है एक महल वीराने में
पूछे जो कोई कह दो, जन्नत सा मकां है ये
निमकी भी है अश्को की ,शीरा है तब्बस्सुम का
ख्वाबों के रंगी मंज़र ,जज़्बों की दुकां है ये
तस्वीरे -सनम झलके नज़रों से मेरी जैसे
दुनिया की रवायत में मंज़ूर कहाँ है ये
खुदा औ" सनम दोनों ,कुछ फर्क नहीं दिल पे
सजदा करूँ राहों में बस मेरा इमां है ये
लबों से चूमूं ,हर नक्शे-कदम को तेरे
मुझको मेरी जानां. पूजा का निशां है ये
पलकों में जो पोशीदा , सपनो का बयां है ये
ख्वाबों का बसाया है एक महल वीराने में
पूछे जो कोई कह दो, जन्नत सा मकां है ये
निमकी भी है अश्को की ,शीरा है तब्बस्सुम का
ख्वाबों के रंगी मंज़र ,जज़्बों की दुकां है ये
तस्वीरे -सनम झलके नज़रों से मेरी जैसे
दुनिया की रवायत में मंज़ूर कहाँ है ये
खुदा औ" सनम दोनों ,कुछ फर्क नहीं दिल पे
सजदा करूँ राहों में बस मेरा इमां है ये
लबों से चूमूं ,हर नक्शे-कदम को तेरे
मुझको मेरी जानां. पूजा का निशां है ये
बुधवार, 9 सितंबर 2009
sanrakshan
घेरा था
जाली की
बाड़ से
नन्हे से
पौधे को
ले कर
यह
प्रयोजन ..
बन
ना
जाए
क्षुधातुर
जंतुओं
का
बेवक्त
ही
वह
भोजन ...
देता
है छाँव
पथिक को
वृक्ष
हुआ
सुदृढ़
ले कर
प्राकृतिक
विकास...
न हटाते
बाड़ गर
समयानुकूल
हो कर,
रह जाता
कुंद हो
उसके
अंतस का
हर
एहसास
जाली की
बाड़ से
नन्हे से
पौधे को
ले कर
यह
प्रयोजन ..
बन
ना
जाए
क्षुधातुर
जंतुओं
का
बेवक्त
ही
वह
भोजन ...
देता
है छाँव
पथिक को
वृक्ष
हुआ
सुदृढ़
ले कर
प्राकृतिक
विकास...
न हटाते
बाड़ गर
समयानुकूल
हो कर,
रह जाता
कुंद हो
उसके
अंतस का
हर
एहसास
दस्तक
एक पुरानी रचना कुछ संशोधनों के साथ पेश कर रही हूँ
सुनी है बिन आहट, उस दस्तक पर ऐतबार है
अहद-ए-वस्ल हुआ नहीं ,फिर भी इंतज़ार है
गुज़रा यूँ हर लम्हा ,तस्सवुर में तेरे जानां
बेकरारी के पहलू में ज्यूँ मिल गया करार है
एहसास मेरे महके ,ज्यूँ तेरे कलामों में
साँसों से तेरी छू कर , रों रों मेरा गुलज़ार है
कहें ना कहें , सुन लेते हैं हम बातें दिल की
निगाहों की है गुफ़्तगू ,लफ़्ज़ों की ना दरकार है
बज़्म में मेरी, नहीं काम इन खिज़ाओं का
हर लम्हा खिलती यहाँ मौसमे - बहार है
ना सुनेगा जो तू ,तेरे लिए लिख छोड़े थे
पेशे-खिदमत ज़माने को मेरे अशआर है
फ़र्क मेरी डोली तेरे जनाज़े में नही है ज़्यादा
तुझे भी मुझे भी ले जाते चंद कहार है
डूबे हैं इश्क़ में ,नहीं फ़िक्र हमें साहिल की
हमें तो मुबारिक बस मोहब्बत की मझधार है
मीठा सा दर्द है मोहब्बत की चुभन का तन में
दुनिया समझी है उसे ,कि गुल नहीं वो खार है
लबों को सीना मजबूरी सही ए जानम
सुन ख़ामोशी,मेरी मोहब्बत का ये इज़हार है
सुनी है बिन आहट, उस दस्तक पर ऐतबार है
अहद-ए-वस्ल हुआ नहीं ,फिर भी इंतज़ार है
गुज़रा यूँ हर लम्हा ,तस्सवुर में तेरे जानां
बेकरारी के पहलू में ज्यूँ मिल गया करार है
एहसास मेरे महके ,ज्यूँ तेरे कलामों में
साँसों से तेरी छू कर , रों रों मेरा गुलज़ार है
कहें ना कहें , सुन लेते हैं हम बातें दिल की
निगाहों की है गुफ़्तगू ,लफ़्ज़ों की ना दरकार है
बज़्म में मेरी, नहीं काम इन खिज़ाओं का
हर लम्हा खिलती यहाँ मौसमे - बहार है
ना सुनेगा जो तू ,तेरे लिए लिख छोड़े थे
पेशे-खिदमत ज़माने को मेरे अशआर है
फ़र्क मेरी डोली तेरे जनाज़े में नही है ज़्यादा
तुझे भी मुझे भी ले जाते चंद कहार है
डूबे हैं इश्क़ में ,नहीं फ़िक्र हमें साहिल की
हमें तो मुबारिक बस मोहब्बत की मझधार है
मीठा सा दर्द है मोहब्बत की चुभन का तन में
दुनिया समझी है उसे ,कि गुल नहीं वो खार है
लबों को सीना मजबूरी सही ए जानम
सुन ख़ामोशी,मेरी मोहब्बत का ये इज़हार है
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