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ज़ेहन में है
प्रियतम सागर
भुज बन्धन में
तट के किन्तु रहती,
लगन मिलन की
ले कर अंतर्मन
प्यासी नदिया बहती,
छोड़ कर पीछे
शुष्क किनारे .....
बिछड़ा अंश है
सागर का वो
जुदा नहीं रह पाएगी,
जीवन कर्म को
पूरा करने
कष्ट सभी सह जाएगी,
भले मिलें ना
उसे सहारे...
धैर्यवान परम है सिंधु
तय है मिलना उसका
अंश से अपने ,
उत्कंठित उत्साहित सरिता
आतुर चपल
कब होंगे पूरे सपने !!
मिलते नित हैं
दैव इशारे....
प्यासी नदिया
बहती जाती
रह जाते हैं शुष्क ,
रुष्क किनारे ...