सोमवार, 30 सितंबर 2019

छूटा था सागर


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पेश्तर
लबों की छुअन से
छूट गया था
हाथों से सागर,
तिश्नगी बाकी रही
ना थी ये मय
हमको मयस्सर......

पेश्तर- पहले /before
तिश्नगी-प्यास/thirst
मयस्सर-उपलब्ध/available

रविवार, 15 सितंबर 2019

सजदे तो कम करो.....


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दुनिया में दीनो इश्क़ के चर्चे तो कम करो
या आशिकों पे जारी फतवे तो कम करो...

पलकें बिछाए बैठे हैं हम राह में तेरी
तुम भी अना के अपनी, मसले तो कम करो ...

वैसे ही कम है वक़्त मोहब्बत के वास्ते
यूँ इश्क़ में ये रोज़ के झगड़े तो कम करो...

ना झुक सके तुम मेरी मोहब्बत में ग़म नही
गैरों के दर पे जा के ,सजदे तो कम करो...

जब गुफ़्तगू का हासिल जंग के सिवा नहीं
दिल में फिर दोस्ती के जज़्बे तो कम करो...

माना के खुशनसीब हो चाहत मेरी हो के
लेकिन ग़ुरूर औ नाज़ के जलवे तो कम करो...

शनिवार, 14 सितंबर 2019

क्यूँ है.....!!!


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फ़राख़दिली से बख़्शी नेमतें उसने
लगती न जाने फिर ,कमी क्यूँ है..

ख़ुशियों से आबाद है झोली मेरी
आँख में अजानी सी, नमी क्यूँ है..

तपिशे जज़्बात भरपूर है दिल में
बर्फ़ अपने रिश्ते पे ,जमी क्यूँ है..

सफ़र जारी है बिछड़ कर भी तुझसे
ज़िन्दगी उस मोड़ पर, थमी क्यूँ है..

दूरियाँ महज़ भरम है नज़रों का ही
आसमाँ संग उफ़क पर ,ज़मीं क्यूँ है..

सांझे न सही शामो सहर अपने
खुशी और ग़म हमारे, बाहमी क्यूँ है

मायने:
फराखदिली-उदारता/generosity
नेमतें-उपहार/वरदान/boon/gift
तपिशे जज़्बात- एहसासों की गर्माहट/warmth of emotions
उफ़क -क्षितिज/horizon
बाहमी -आपसी/mutual

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

याद तुम्हारी.....


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नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी
याद तो आते हैं वो
जिन्हें भुलाया हो कभी...

रह रहे हो तुम तो हर पल
दिलो ज़ेहन में मेरे
उतरते हो लफ़्ज़ों में
नज़्म हो कर
दौड़ते हो रगों में
लहू बन कर
बसते  सीने में
धड़कन की तरह
गुनगुनाते हो गीत कोई
साँसों की लय पर मेरी
तभी तो
नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी...

हाँ !!
याद आते है
कुछ पल घड़ियाँ दिन और रात
बिताए थे जो संग में हमने ,
हो जाने पर फिर से
वैसा ही कुछ
जो बना था निमित्त
उन क्षणों के होने का...

गुज़रती हूँ जब जब
उन जगहों से
जहाँ हुए थे हम साथ
जी लेती हूँ  उस सुकूँ को
जो बहता है लगातार
दरमियाँ हमारे...

देखती हूँ
बेलों के झुरमुट में
पार्क की उस बेंच को
बैठ कर जिस पर
खाते हुए मूंगफली
बिखेरे थे ठहाके
साथ छिलकों के हमने,
हो लेते हैं साथ मेरे
वो बिखरे ठहाके
बन कर मुस्कान
मेरे रौं रौं की...

छू जाना उंगलियों का
चलते चलते
साथ साथ सड़क पर
था आकस्मिक
या प्रयत्न पहुँचाने का
कुछ अनकहा सा
नहीं जान पाई हूँ
आज तक
पर ज़िंदा है मेरे वजूद में
अब तलक
सिहरन उस छुअन की...

जीना तुमको
तुम्हारे ना होने में
देता  नहीं  एहसास
तुमसे बिछड़ने का
कहती हूँ
इसीलिए तो,
नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी ...

निश्चित है मिलन पिया से...


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मिलन की घड़ियाँ छोटी,
होता विरह तो लंबा है...

समा के खुद में साजन,
बिछोह उसका जीना है...

धड़कन गुंजारे पहलू में,
लब चुप ही रहता है...

अश्रुधार बहे नैनन से
फिर भी स्वप्न संजोना है ...

निश्चित है मिलन पिया से,
यह विश्वास ना खोना है...

एहसासात रूह के......


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आते हो तुम
कभी मेहमान
कभी अनजान
कभी अपने
कभी पराये
कभी गहन
कभी सतही
हो कर
और लौट भी जाते हो.....

कुछ कुछ रह जाते हो
फिर भी
कभी तरलता
कभी सरलता
कभी खुशबू
कभी छुअन
कभी तड़प
कभी सुकून
हो कर
बाकी मुझमें..

चाहती हूँ उतारना
खाली पन्नो पर तुमको
बाज़रिया कलम के
मगर कैसे उतरें
एहसासात रूह के
जिस्म से गुज़र कर .....

हमरूह......


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आ जाते हो ख़्वाब में
बन कर सच
हक़ीक़त से भी ज़्यादा
उतर के वजूद में मेरे
दिला देते हो यकीन
होने का अपने
खुलते ही नींद
खोजती हूँ तुमको
सहम जाती हूँ
तुम्हें
खोने के एहसास से
के तभी
कानों में हौले से
कह जाते हो तुम
अभी अभी तो मुझे तुमने
बना कर हमरूह
समा लिया था ना
तुम्हारे अपने वजूद में ,
कहाँ ढूंढ रही हो पगली
अब बाहर मुझको .....