# # #
बूटे बन कर
जौहरी,
लिए मोती
अपने
पत्तों सी
हथेलियों पर,
देखो आ खड़े हैं
बाजार में
लगाए अपनी
व्याकुल दृष्टि
उसकी चंचल
सहेलियों पर..
कैसी है
यह भोर
डोल रही है
साँसे
बन कर
तेज हवा का
झोंका,
प्राणों का
विश्वास
डगमगाया
किसको
ऐसा मिल गया
मौका ......
कैसे जाने
कोई,
जमना तट पर
बज रही
बंसी
कान्हा की
सुनकर
खोल रही
वातायन
पीड़ा
राधा की .....
अरे ! ये रजनी
क्यों बहा रही है
आंसू
लेकर
मेघों की झीनी
ओट,
साजन
तुम क्यूँ चले ना आये
सहलाने
अपनी प्रिया की
चोट....