शनिवार, 30 अप्रैल 2011

नहीं है मन का ठौर सखी री ...!!!

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कठिन बहुत ये दौर सखी री..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
प्रेम से यूँ पहचान करा कर ,
कहाँ गए चितचोर सखी री !!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!

ना जाने आंसू इतने ,ये नैन 
कहाँ से भर भर लाते
मन के संवेगों में कितने
दृश्य हैं मिटते  बनते जाते

चले ना कोई जोर सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!

हर पल मैं जी लेती उनको
बसे हैं वो धड़कन में मेरी
दिखते ,पलक मूँद जो लेती
हों भले दूर अखियन  से मेरी

भाए कुछ ना और सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!

यही तपस्या है अब मेरी
कुंदन बनूँ विरह में जल कर
आयें जिस पल वो द्वारे  मेरे
अर्पण कर दूं , मन निर्मल कर

पास नहीं कुछ और सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
कठिन बहुत ये दौर सखी री...!!

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

स्वीकृति-समग्रता की


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स्वीकारें हम
'स्वयं ' को,
बिना किसी
मूल्यांकन के ..
स्वीकारें
हर वृति को
स्वयं की
जो दिखती है
अन्यों में
हमें
एक दोष की तरह ....

हूँ मैं स्वार्थी
उतनी ही
जितना हो सकता है
कोई भी दूसरा
अनुसार मेरे ..
है क्रोध
मुझमें भी
वैसा ही
दिखता है जैसा
अन्यों में भी मुझको ...

नकारना
इन विषय-वासनाओं को
नहीं दिला सकता
मुझे मुक्ति इनसे
अपितु
जमा लेती हैं ये
गहरे अवचेतन में
अपनी जड़ें
करने से
दमन इनका ...

उपचार
होता है संभव
रोग का
मात्र
उसके निदान के
पश्चात् ...
आ जाती हैं
परिधि पर
ये विषय वासनाएं
मिलते ही स्वीकृति
मेरे स्वयं की ..

नहीं होती हूँ
प्रभावित इनसे मैं
होने के बाद
बोध इनका
और
हो जाता है संभव
विसर्जन
तत्पश्चात इनका
सहजता से ...

स्वीकृति
समग्रता की ही
दिला सकती है
मुक्ति हमें
नकारात्मकता से
जिससे
जी सकें हम
एक
सरल ,
सहज
और
सकारात्मक
जीवन
बढते हुए
मंजिल की तरफ ......



गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

चंद जज़्बात ..

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रहे मसरूफ़
हर लम्हा
किसी के
इंतज़ार में ...
अफ़सुर्दा हैं
अब
छूट कर
हम
इस उम्मीद से ..

अफ़सुर्दा- उदास

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दम निकलता है
हर इक
अरमान पे
अब इस कदर .....
पुरसुकूं जीने को
लाजिम है कि
ख्वाहिश न रहे ....

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पा कर
हसीं नवाज़िशें
इस इश्क की
सनम .....
क्यूँ खो चुके हैं
उनको
कई गफलतों में
हम !!!!

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भुला कैसे सकोगे
वक्त गुज़रा
संग जो अपने ..
खुली आँखों से
देखे थे
जो हमने
अनगिनत सपने ..

नहीं है फर्क
तुझमें और मुझमें
कोई भी हमदम ...
हुए बेज़ार
जब से तुम
मैं भूली सब मेरे नगमें .....



मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

पतझड़ के पीले पात ...

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हो जाने दो
उर्वरक
पतझड़ के
पीले पत्तों को
धरा में
उपस्थित
जीवन के
सहज
प्रस्फुटन के लिए...

इक्कठा कर
इन सूखे झरे
पातों को
क्यूँ देते हो
सम्भावना
किसी
नन्ही सी
चिंगारी को
मिलते ही
हवा
दावानल
बनने के लिए

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

चंद और रोज...

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जी लिए हैं
मैंने
चंद लम्हे..
गुज़र कर
तेरे
पुराने खतों से.....
जो रह गए थे
दबे हुए
तेरी
किताबों में...
मिल गयी हैं
कुछ और सांसें
चंद और रोज़
लेने के लिए...

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

तुम्हें कोई याद करता है ....

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जुदा तन हों भले जानां
न होंगी पर जुदा रूहें
धडकता दिल ,
हर आती सांस
तुमसे कहती जायेगी -
तुम्हें कोई याद करता है ...!!!

कभी बेसाख्ता
निकलोगे घर से ,
जानिबे मंज़िल ...
तले क़दमों के होंगे
कुछ निशाँ
बीते हुए कल के ..
उसी लम्हे में
सरगोशी सी होगी
तेरे कानों में-
तुम्हें कोई याद करता है ...!!!

भरी महफ़िल में होंगे
मौज के मेले
हजारों ही
डुबो के खुद को
उनमें तुम
भुला बैठोगे
ये दुनिया
परे दुनिया से
होते ही
खबर मिल जायेगी तुमको-
तुम्हें कोई याद करता है ...!!!

किसी पल होगे
तुम तन्हा
खुदी में
खुद की डूबोगे..
अतल गहराइयां
मन की
छुओगे जब अकेले में
उसी क्षण
एक धीमी सी
सदा
हर सिम्त गूंजेगी-
तुम्हें कोई याद करता है ...!!!




बुधवार, 20 अप्रैल 2011

बस मोहन होना होता है ....

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मीरा का
दीवानापन
कब बूझ सकोगे
शब्दों में ..
करने को
महसूस उसे
बस
मोहन होना होता है .....

कर देती है
पूर्ण समर्पण
नहीं कामना
प्रतिफल की
अश्रु भाषा को
अपनाने
बस
मोहन होना होता है .....

जोगन हो गयी
प्रेम दीवानी ,
बिसर गयी
दुनिया सारी ..
इस दुनिया से
पार ले जाने
बस
मोहन होना होता है .....

बुरा -भला
जैसा भी है
सर्वस्व तुम्ही को
है अर्पण ..
सकल समग्र
अवगुण अपनाने
बस
मोहन होना होता है .....

मीरा ने
अद्वैत था पाया
षड्यंत्र किये
जग ने सारे
विष भी
अमृत कर देने को
बस
मोहन होना होता है .....

प्रपंच अनेको
रचे हैं जाते
प्रेम मिटाने की
खातिर
जग में प्रेम
बहाने को
बस
मोहन होना होता है .....




मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

तार ले मुझको तारणहार ...

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पूजा मेरी हो स्वीकार
तब होगा मेरा उद्धार
तीन लोक के हे संचालक !
तार ले मुझको तारणहार ...

क्रोध,कामना,अहम् ,विद्वेष
रहे हृदय में कभी ना शेष
तेरे चरणों में कर अर्पण
खाली हो मेरा घर द्वार
तार ले मुझको तारणहार ....

खाली घर में जोत जलाऊँ
तेरी प्रीत की लगन लगाऊँ
मुंदी हैं पलकें ,भाव समर्पित
नहीं हैं शब्दों का व्यापार
तार ले मुझको तारणहार ...

अश्रु जल से चरण पखारूँ
हृदय कमल मैं तुझ पर वारूँ
सर्वस्व किया अब तुझको अर्पण
तुम्ही नाव लगाओ पार
तार ले मुझको तारणहार ....

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

इक पीर उठी उर से साजन ...


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इक पीर उठी उर से साजन ,
अँखियाँ भर बरसीं ज्यूँ सावन,
जब विलग हुई तेरे भावों से,
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .......

आखर आखर में छिपा के मैं
निज भाव हृदय के बतलाऊं
गीतों में मुखरित प्रेम तेरा
पा कर फिर खुद पर इठलाऊं
है क्षणिक प्रिय ,अवसाद मेरा
बह जाता, संग अश्रु-प्लावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन

जो उमड़ घुमड़ कर आये थे
श्यामल मेघा वो रीत गए
निरभ्र नील गगन सा मन
क्षण दुविधाओं के बीत गए
कर जाती निर्मल ,शुभ्र ,स्वच्छ
बहे धार प्रीत की जब पावन
इक पीर उठी उर से साजन
मन उपवन ज्यूँ लागे कानन .....



गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

दो क्षणिकाएं .....

साजिश ..

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शब्द लड़े ,
बात बढ़ी ,
घुटे भाव
और
छूटा साथ ...
साजिश में
फंस
अहम् की
देखो
हम बैठे
अब
रीते हाथ.....

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क्यूँ होता है ऐसा....

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रखता नहीं
महत्व
जो ,
कुछ भी
दरमियाँ ...
देता
वही
उजाड़
क्यूँ
रिश्तों का
गुलसितां

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

होने को मुक्कमल ....

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तोड़ कर जाल
इन उलझते हुए
बेमानी से
लफ़्ज़ों का ,
चलो आओ जानां !!
भर के बाँहों में
इक दूजे को ,
बिखरने दें
स्पंदन
ख़ामोशी के,
दरमियाँ हमारे ....
दरकार नहीं
कुछ ज़्यादा की
इससे ,
जीने को
हो कर
मुक्कमल
इस गुज़रते हुए
लम्हें में....



शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

पलकें...

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सिमट आते हैं

कई ख्वाब

मुंदी

पलकों में

मेरी ...

थिरक जाती है

लबों पर हंसी

जी कर उन्हें

पलकों के तले..

सांसें भी

महक उठती हैं

रात की रानी

की तरह...

ए शब् !

ठहर जा अभी ..

ज़रा

कुछ वक्त तो दे

जीने को मुझे

'मैं'

हो कर..

होना है

पराया

मुझे

खुद से ही

होते ही सहर

संग

खुली पलकों के ....




बुधवार, 6 अप्रैल 2011

हिज्र ...

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है सहरा
हिज्र का
कैसा ये
जालिम!!
कि अब तो
अश्क भी
खुश्क
हो चले हैं...
तपिश
बढ़ती गयी
हर ज़र्रा ज़र्रा,
कि देखो
आग बिन
हम
यूँ जले हैं!!!!

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

तुमसे है .....

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खिली जो
मेरे होठों पे ,
वो मुस्कान
तुम से है...
नमी पलकों पे
आ ठहरी ,
बनी अनजान
तुम से है ..

लिखे हैं
जो भी नगमें,
या कि नज्में ,
या कही गजलें
कि सबमें
ज़िक्र बस तेरा ,
वो हर उन्वान
तुमसे है ...

छुपे हो ,
आज तुम,
नज़रों से मेरी ,
पर
समझ लो ये
मेरी हर सांस की,
हर आस की,
पहचान
तुमसे है..

तुम्हारी बेरुखी
न सोख दे
बहता हुआ
दरिया ,
कि बढ़ के
ले लो बाहों में
यही अरमान
तुमसे है ....

तेरी हसरत में
भूले हम
खुदा को
और
खुद को भी,
हसीं रातें ,
महकते दिन ,
मेरा जहान
तुमसे है .....