शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

तुझ बिन जिया उदास.....


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सुबह का सूरज
अंधियारे में
लाये किरणों का उजास
फिर जग जाती
मिलन की तुझसे
गहरी सी इक आस
पल पल राह तके ये नैना
तुझ बिन जिया उदास ....

थम जाए ये दीठ ए साथी!
जब देखूं तोहरी सूरत
पूजा तू ही
मन्त्र  तू ही है
तू मन मंदिर की मूरत
अब तो आ जा
हाथ थाम ले
सुन मेरी अरदास
तुझ बिन जिया उदास.....

मोहन तू छलिया है इतना
राधा को तरसाये
रुक्मन तेरे विरह वियोग में
नयनन नीर बहाए
मीरा गाये प्रेम वेदना
ले ले कर उच्छवास
तुझ बिन जिया उदास......

पल छिन साथ प्रतीत है तेरा
पर तड़पूँ मैं दिन रैन
झलक तेरी दिख जाए दम भर
मिले हिय को चैन
सूख ना पाती भीगी पलकें
क्यूँ तुझ को ना एहसास
तुझ बिन जिया उदास.....

रविवार, 17 नवंबर 2019

ख़ुद की मौज में....


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कर रही है खुशगवार
रातरानी की यह मादक महक
मुझको...
लदी हुई हैं शाखें
कोमल उजले सफेद फूलों से,
खिल उठते हैं हममिजाज़ मौसम में
गुंचे गुलों के
बिना किसी इंतजार
बिना किसी उम्मीद
बिना इस सोच के
कि इस खुशबू को
कोई महसूसेगा या नहीं,
सार्थकता  है 'होने' की
बस  खिलने
और सुगंध बिखेरने में ही,
होते होंगे बहुतेरे
जो चले जाते हैं अनछुए से
गमकती हुई रातरानी के वजूद से
मगर नहीं होता मायूस
कोई बूटा
नहीं रोकता
खिलने से फूलों को
ना ही कहता है
उन बेहिस लोगों से
कि रुको देखो
कितना लदा हूँ मैं फूलों से
महसूस करो ना तुम
मेरी खुशबू को ,
कैसे कर सकते हो तुम
नज़रअंदाज़ मेरी मौजूदगी की
लेकिन 'होना' उसका
नहीं है निर्भर  किसी पर भी
वो तो है खुश ख़ुद की मौज में
नहीं करता अपेक्षा 
किसी की चाहत या तारीफ की ,
कर रहा है सराबोर
फ़िज़ा को अपनी खुशबू से,
जो महसूस करे
करम उसपे मौला का
ना कर सके तो
बदनसीबी उसकी....


बुधवार, 13 नवंबर 2019

आघात.......


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समझ लेते हैं
जिसे आघात हम
होता है वह शिल्प
उस निपुण संगतराश का,
तराश रहा होता है जो
अनगढ़ पत्थर में छुपे
बेढब जमावड़ों में ढके
हमारे सुगढ़ मूल स्वरूप को
धारदार छेनी की
कभी हल्की
कभी तीखी चोटों से...

दिखती है प्रकट में
करते हुए आघात छेनी ही
तोड़ते हुए आडम्बरी वजूद को
किन्तु है वो तो
एक उपकरण मात्र
रचयिता के सधे हुए हाथों में
करता है जिसका उपयोग
वो सर्वशक्तिमान
उकेरने को खुद का ही स्वरूप
किसी मनपसंद पात्र को चुन कर.....

कृतज्ञता हमारी
मूर्तिकार के प्रति
छेनी के प्रति
और इस अस्तित्व के प्रति
दे सकती है ताक़त
सहने की हर आघात को
पी लेने की हर दर्द को,
तभी तो उतरता है
परमात्मा
अपने समग्र रूप में
अपनी सम्पूर्ण संवेदना के साथ .....

शनिवार, 9 नवंबर 2019

जागृत रवि.....


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घेर लिया था
अवसाद की बदली ने
अलसाई  सर्द सुबह के
सोए हुए से सूरज को,
होते ही जागृत
अपने तेज और प्रकाश के प्रति
हुआ था प्रकट रवि
बिखेरते हुए लालिमा चहुं ओर
बदलते हुए स्वरूप
उस धूसर सी बदली का
अपने चमकते सुनहरी रँग से...


के तुम आओगे .......

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शम्मे वफ़ाओं की जलाए बैठी हूँ  , के तुम आओगे
अश्क़ पलकों में छुपाए बैठी हूँ ,के तुम आओगे...

खामोशियाँ इक दूजे तक पहुंची हैं मगर अब
आस गुफ़्तगू की लगाए बैठी हूँ ,के तुम आओगे ....

धड़क उठता है दिल मेरा ज़रा सी जुम्बिश पे
नज़र यूँ राह में तेरी ,बिछाए बैठी हूँ के तुम आओगे....

नहीं कटते जुदाई में यूँ तन्हा शाम ओ सहर
तस्सवुर की हसीं महफ़िल,सजाए बैठी हूँ ,के तुम आओगे ...


हो हर धड़कन में ,साँसों में,समाए रूह में मेरी
खुद को खुद ही से चुराए बैठी हूँ के तुम आओगे....

नहीं थे तुम लकीरों में मेरे हाथों की ये माना
जो था लिक्खा , सब कुछ मिटाए ,बैठी हूँ के तुम आओगे....

है रोशन ये जहां सारा तेरे आने की आहट से
दरीचों के दिये मस्नूई ,बुझाए बैठी हूँ ,के तुम आओगे....

मायने:
गुफ़्तगू-बातचीत
जुम्बिश-हलचल
तस्सवुर-कल्पना
मस्नूई-बनावटी/पाखंडपूर्ण

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

शरद पूर्णिमा......

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शरद की गुलाबी चादर में लिपटा
स्निग्ध धवल सुधाकर
लिए है मादकता
अपने मिलन के पलों की..

रुपहली चांदनी में
कलकल करती नदिया तीरे
दिखते दो बदन
पिघल रहे थे
चंद्र किरणों की तपिश से,
सरिता के शीतल नीर की छुअन
कर रही थी प्रज्ज्वलित
अगन हृदय में ,
प्रतिबिम्ब मयंक का
झिलमिलाते जल में
लग रहा था ज्यूँ
स्वयं निशापति
उतर आये हैं झूम कर
चूमने युगल पाँवों को..

छुए बिना देह
उतर गए थे
हम रूहों में एक दूजे की
गमक रहा है वजूद
तब से
रात की रानी की तरह,
दैदीप्यमान है आभामंडल अपना
समा जाने से हममें
शरद पूनो के चाँद का.....

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

इश्क़ के परचम बेहतर हैं .....


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तेरी नज़रों से देखा ,पाया कुछ तो हम बेहतर हैं
तुझसे फिर भी जानेजां कुछ तो हम कम बेहतर हैं

डरना क्या अब ज़ख्मों से ,दर्द दवा हो जाएगा
दुश्मन के खंजर से तो यारों के मरहम बेहतर हैं...

ख़्वाबों की ताबीर में ना बर्बाद किया हमने क्या क्या
दुनिया की फ़ितरत से यारब अपने दमख़म बेहतर हैं..

मर्कज़ में जा कर ,खुद को पाना ही तो मंज़िल है
महवर पर ही घूम रहे क्यूँ कहते तुम हम बेहतर हैं....

रोज़ के शिकवे ,मायूसी, ये दर्द भरे नाले तौबा
ज़हरीले अमृत पीने से आबे जमजम बेहतर हैं....

ना भरमाओ दर्द छुपा कर दिल की दिल से निस्बत है
लबों पे झूठी मुस्कानों से चश्मे पुरनम बेहतर हैं.....

चर्चे सुन कर गली गली ,सुकूँ दिलों पे तारी है
गुमनामी की मौत से अपने इश्क़ के परचम बेहतर हैं...

मायने:

ताबीर-पूरा करना/complete
मर्कज़-केंद्र/centre
महवर-परिधि/circumference
आबे-जमजम-मक्का का पवित्र पानी
निस्बत-लगाव/connection
चश्मे-पुरनम-भरी हुई आंख/teary eyes
तारी-छाया हुआ/spreaded
परचम-झण्डा/flag

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

साहिल कर दिया


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इश्क़ तुझसे क्या हुआ
तुझको ख़ुदा के
मुक़ाबिल कर दिया,
मुंतज़िर थे डूबने को
बहर में कब से
लहरों ने जिसकी
हमें साहिल कर दिया.....

ओ रंगरेजवा


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ओ रंगरेजवा !
रंग दीनी किस बिध
चूनर तूने कोरी रे ,
दिठे मैली
जग को चुनरिया
जुग बीते ना धोई रे ,
एक बावरिया
बिसार के जगति
रंग तोहरे मां खोई रे,
मैली थी जहँ
धोया जबनि
बहा रंग
तोहरे इसक का रे
चाक जहँ थी
तहँ सी लई हम ने
सूत हमरे नेह का रे.....

सोमवार, 30 सितंबर 2019

छूटा था सागर


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पेश्तर
लबों की छुअन से
छूट गया था
हाथों से सागर,
तिश्नगी बाकी रही
ना थी ये मय
हमको मयस्सर......

पेश्तर- पहले /before
तिश्नगी-प्यास/thirst
मयस्सर-उपलब्ध/available

रविवार, 15 सितंबर 2019

सजदे तो कम करो.....


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दुनिया में दीनो इश्क़ के चर्चे तो कम करो
या आशिकों पे जारी फतवे तो कम करो...

पलकें बिछाए बैठे हैं हम राह में तेरी
तुम भी अना के अपनी, मसले तो कम करो ...

वैसे ही कम है वक़्त मोहब्बत के वास्ते
यूँ इश्क़ में ये रोज़ के झगड़े तो कम करो...

ना झुक सके तुम मेरी मोहब्बत में ग़म नही
गैरों के दर पे जा के ,सजदे तो कम करो...

जब गुफ़्तगू का हासिल जंग के सिवा नहीं
दिल में फिर दोस्ती के जज़्बे तो कम करो...

माना के खुशनसीब हो चाहत मेरी हो के
लेकिन ग़ुरूर औ नाज़ के जलवे तो कम करो...

शनिवार, 14 सितंबर 2019

क्यूँ है.....!!!


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फ़राख़दिली से बख़्शी नेमतें उसने
लगती न जाने फिर ,कमी क्यूँ है..

ख़ुशियों से आबाद है झोली मेरी
आँख में अजानी सी, नमी क्यूँ है..

तपिशे जज़्बात भरपूर है दिल में
बर्फ़ अपने रिश्ते पे ,जमी क्यूँ है..

सफ़र जारी है बिछड़ कर भी तुझसे
ज़िन्दगी उस मोड़ पर, थमी क्यूँ है..

दूरियाँ महज़ भरम है नज़रों का ही
आसमाँ संग उफ़क पर ,ज़मीं क्यूँ है..

सांझे न सही शामो सहर अपने
खुशी और ग़म हमारे, बाहमी क्यूँ है

मायने:
फराखदिली-उदारता/generosity
नेमतें-उपहार/वरदान/boon/gift
तपिशे जज़्बात- एहसासों की गर्माहट/warmth of emotions
उफ़क -क्षितिज/horizon
बाहमी -आपसी/mutual

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

याद तुम्हारी.....


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नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी
याद तो आते हैं वो
जिन्हें भुलाया हो कभी...

रह रहे हो तुम तो हर पल
दिलो ज़ेहन में मेरे
उतरते हो लफ़्ज़ों में
नज़्म हो कर
दौड़ते हो रगों में
लहू बन कर
बसते  सीने में
धड़कन की तरह
गुनगुनाते हो गीत कोई
साँसों की लय पर मेरी
तभी तो
नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी...

हाँ !!
याद आते है
कुछ पल घड़ियाँ दिन और रात
बिताए थे जो संग में हमने ,
हो जाने पर फिर से
वैसा ही कुछ
जो बना था निमित्त
उन क्षणों के होने का...

गुज़रती हूँ जब जब
उन जगहों से
जहाँ हुए थे हम साथ
जी लेती हूँ  उस सुकूँ को
जो बहता है लगातार
दरमियाँ हमारे...

देखती हूँ
बेलों के झुरमुट में
पार्क की उस बेंच को
बैठ कर जिस पर
खाते हुए मूंगफली
बिखेरे थे ठहाके
साथ छिलकों के हमने,
हो लेते हैं साथ मेरे
वो बिखरे ठहाके
बन कर मुस्कान
मेरे रौं रौं की...

छू जाना उंगलियों का
चलते चलते
साथ साथ सड़क पर
था आकस्मिक
या प्रयत्न पहुँचाने का
कुछ अनकहा सा
नहीं जान पाई हूँ
आज तक
पर ज़िंदा है मेरे वजूद में
अब तलक
सिहरन उस छुअन की...

जीना तुमको
तुम्हारे ना होने में
देता  नहीं  एहसास
तुमसे बिछड़ने का
कहती हूँ
इसीलिए तो,
नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी ...

निश्चित है मिलन पिया से...


##########

मिलन की घड़ियाँ छोटी,
होता विरह तो लंबा है...

समा के खुद में साजन,
बिछोह उसका जीना है...

धड़कन गुंजारे पहलू में,
लब चुप ही रहता है...

अश्रुधार बहे नैनन से
फिर भी स्वप्न संजोना है ...

निश्चित है मिलन पिया से,
यह विश्वास ना खोना है...

एहसासात रूह के......


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आते हो तुम
कभी मेहमान
कभी अनजान
कभी अपने
कभी पराये
कभी गहन
कभी सतही
हो कर
और लौट भी जाते हो.....

कुछ कुछ रह जाते हो
फिर भी
कभी तरलता
कभी सरलता
कभी खुशबू
कभी छुअन
कभी तड़प
कभी सुकून
हो कर
बाकी मुझमें..

चाहती हूँ उतारना
खाली पन्नो पर तुमको
बाज़रिया कलम के
मगर कैसे उतरें
एहसासात रूह के
जिस्म से गुज़र कर .....

हमरूह......


************
आ जाते हो ख़्वाब में
बन कर सच
हक़ीक़त से भी ज़्यादा
उतर के वजूद में मेरे
दिला देते हो यकीन
होने का अपने
खुलते ही नींद
खोजती हूँ तुमको
सहम जाती हूँ
तुम्हें
खोने के एहसास से
के तभी
कानों में हौले से
कह जाते हो तुम
अभी अभी तो मुझे तुमने
बना कर हमरूह
समा लिया था ना
तुम्हारे अपने वजूद में ,
कहाँ ढूंढ रही हो पगली
अब बाहर मुझको .....

रविवार, 18 अगस्त 2019

मुतमईन


***************

याद तेरी
पाँव का काँटा तो नहीं
निकाल दूँ
खींच के
जिसको
और हो जाऊँ मुतमईन
के ये टीस
कुछ ही पल तो है .......

सोमवार, 12 अगस्त 2019

बेवजह तो नहीं है.....


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इश्क़ में यूँ उतर जाना
बेवजह तो नहीं है,
इस दर्द से गुज़र जाना
बेवजह  तो नहीं है...

मुलाक़ात हुई खुद से
हुए जब तुम मुख़ातिब
रूह का सुकून पाना
बेवजह तो नहीं है ....

चाहे तू भी मुझे ऐसे
ये अना है या मोहब्बत
तेरी यादों में पिघल जाना
बेवजह तो नहीं है .....

तेरी चोटों ने तराशा
मुझमें वजूद मेरा
ज़र्रा ज़र्रा यूँ बिखर जाना
बेवजह तो नहीं है .....

हो जाऊँ फ़ना मैं अब
रब की है ये चाहत
हर साँस उसका तराना
बेवजह तो नहीं है....

वो एहसास


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एक एहसास है वो
जो जगा देता है
मोहब्बत
सोई हुई मुझमें
सदियों से ,
और फिर
ज़िन्दगी जागती है
खिलती है
गाती गुनगुनाती है
लिपटे हुए
उस एहसास के होने से

मंगलवार, 6 अगस्त 2019

चार आँखों में....


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मिलना अपना
नहीं था न
कोई पहली बार
मिलने जैसा ?
था वो तो
जी लेना फिर से
गुज़रे हुए लम्हात का...

एक एहसासे सुकूँ था
अपने बिछड़े हिस्से से
फिर हुई
मुलाकात का ,

अबोला  कहना
अनकहा सुनना
ओर न छोर था
बीच अपने किसी बात का...

पहचान कर
अपनी सी ताल को
बढ़े जा रही थी
धड़कनें
हो कर बेकाबू,
इल्म न था उनको
किसी वक़्ती एहतियात का,

जन्मों की जानी चिन्ही
महक थी
हर सूं मेरे
ना, ना!
ये तो समाई थी
मुझमें ही ,
उतर आया था
चार आँखों में
एक समन्दर
उमड़े हुए जज़्बात का...

रविवार, 21 जुलाई 2019

शुष्क-रुष्क किनारे....


***************
ज़ेहन में है
प्रियतम सागर
भुज बन्धन में
तट के किन्तु रहती,
लगन मिलन की
ले कर अंतर्मन
प्यासी नदिया बहती,
छोड़ कर पीछे
शुष्क किनारे .....

बिछड़ा अंश है
सागर का वो
जुदा नहीं रह पाएगी,
जीवन कर्म को
पूरा करने
कष्ट सभी सह जाएगी,
भले मिलें ना
उसे सहारे...

धैर्यवान परम है सिंधु
तय है मिलना उसका
अंश से अपने ,
उत्कंठित उत्साहित सरिता
आतुर चपल
कब होंगे पूरे सपने !!
मिलते नित हैं
दैव इशारे....
प्यासी नदिया
बहती जाती
रह जाते हैं शुष्क ,
रुष्क किनारे ...

मंगलवार, 18 जून 2019

पत्थर भी पिघल जाए.....


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मुमकिन है मोहब्बत से तशद्दुद भी बदल जाये
देख कर फ़ितरते मोम पत्थर भी पिघल जाए.....

बर्क लहराई थी शामे वस्ल जो तेरी आँखों में
नूर में उसके मेरी शबे हिज्र भी  ढल  जाए.....

जिस्मे पत्थर में खुद को छुपा लूँ कितना
ख़ुश्बू-ए-रूह बिखरने को फिर भी मचल जाए....

नज़रों से दूर मगर मुझमें बसे रहते हो
इक इसी बात पर मेरा दिल भी बहल जाए....

टूट कर जाऊँ बिखर वो पत्थर तो नहीं मैं
वजूदे मोम हूँ जो किसी साँचे में भी ढल जाए.....

बीमारे इश्क़ की ना पूछना खैरियत यारों
दिखे महबूब तो तबियत भी सम्भल जाए.....

मायने:
तशद्दुद-कठोरता/aggression
बर्क़-बिजली/lightening
शामे वस्ल-मिलन की शाम
शबे हिज्र-जुदाई की रात

शनिवार, 8 जून 2019

बाकी है अभी....


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बारहा मिले और बिछड़े, सोज़े हयात बाकी है अभी
अपनी रूहों के मिलन की करामात बाकी है अभी ....

सहर होते ही हो जाएंगे रुख़सत तारे
चाँदनी में नहा लें ,के रात बाकी है अभी.....

दफ़अतन मिले वो सरे राह  सलाम भी ना हुआ
धड़कने बोल उठी ताल्लुकात बाकी है अभी .....

करेंगे राब्ता तुमसे पा लें ज़रा जवाब सभी
दिल में बहुत से सवालात बाकी है अभी ......

वक़्त-ए-फुरसत पे रुख़ इधर करना
अपनी अधूरी सी  मुलाकात बाकी है अभी.....

जाने को दूर मुझसे, रच ली हैं साजिशें तुमने
हिस्सा हूँ मैं तेरा ये ख़यालात बाकी है अभी ......

ज़िन्दगी मैंने तो जी है  ईदो दीवाली की तरह
साज़ ए दिल छेड़ो  जश्ने वफ़ात बाकी है अभी .....

मायने:
बारहा-बार बार
सोज़े हयात-ज़िन्दगी की आँच
दफ़अतन-अचानक
राब्ता-मेल मिलाप
जश्ने वफ़ात-मौत का उत्सव

रातों को जगा रक्खा है ....


**********
तेरे ख़यालों में ज़ेहन को, गिरफ़्तार करा रक्खा है
आज़ादी पे ख़ुद अपनी, पहरेदार बिठा रक्खा है ....

खाई है कसम उसने, ना देखने की मुझको
तस्वीर मेरी को मगर ,सीने से लगा रक्खा है .....

जताते हो तुम ऐसे, के हम कुछ नहीं तेरे
नज़रे दुनिया से मगर, दिल में छुपा रक्खा है.....

वादा था मिलेंगे ना, यक बार भी अब हम
साँसों में एक दूजे को ,अब भी बसा  रक्खा है.....

मुझको भुलाने वाले ,तेरी यादों का सितम कैसा
इक तस्सवुर ने तेरे,मेरी रातों को जगा रक्खा है.....

छोटे छोटे एहसास


***************

लाज़िम* नहीं
तेरा होना
तेरे होने के लिए,
काफ़ी है
इक ख़याल ही
मेरे खोने के लिए

लाज़िम-आवश्यक/ज़रूरी

सोमवार, 3 जून 2019

छोटे छोटे एहसास


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ज़िन्दगी हँसती है
साथ तू हो जब राहों में
तेरे बिना भी तो देख
जिये जा रहे हैं हम,
संजो कर यादें तेरी
हर लम्हा ज़ेहन में अपने
काम दुनियावी बदस्तूर
किये जा रहे हैं हम.......

शनिवार, 1 जून 2019

रतजगे कह रहे....


##########

आईना जब जब निहारती हूँ मैं
अक्स उसका ही ढालती हूँ मैं...

रतजगे कह रहे मेरी आँखों के
उसके ख़्वाबों में जागती हूँ मैं....

जाने कूचे से कब गुज़र जाए
रस्ता उसका यूँ ताकती हूँ मैं..

हर सफ़े पे नाम है उसका
यूँ किताबे जीस्त बाँचती हूँ मैं....

अपनी चाहत का असर ना पूछो
जिस्म दो ,इक रूह मानती हूँ मैं....

उम्र-ए-आख़िर में वो मिला मुझको
जिसको जनमों से जानती हूँ मैं ....

शुक्रवार, 31 मई 2019

इस घर जब तक डेरा है


****************
आयी थी मैं
उतर कर आसमाँ से
किया था बसेरा
एक देह में
बनी थी जो एक घर मेरा
समझना था मुझे खुद को
पड़ गया था
मेरे और तेरे का
अजीब घेरा.....

जुड़े थे रिश्ते नाते कई
घर के द्वार और दीवारों से
दे दिए थे नाम उपनाम कई
मुझे भी सबने
भांति भांति के व्यवहारों से...

निभा रही थी जिम्मेदारियां
हर नाम लक्षण के अनुरूप
भूल बैठी इस जद्दोजहद में
हा ! मैं खुद अपना ही स्वरूप....

आने लगे थे मेहमाँ अनचाहे
हो कर कभी अहम
तो कभी ईर्ष्या और विद्वेष
आ ठहरी थी हीनभावना
धरा था कुंठाओं ने वेश.....

जो होना था
अपना घर मेरा
बन गया ज्यूँ
हो कोई खुली सराय
होने थे जो मेहमान
कुछ दिन के
दिया वक़्त ने
उनको ही मालिक बनाय.....

उठाने को नखरे
मेहमानों के
उलझ गयी थी
उफ्फ मेरी तौबा
धीमी सी आवाज़ अपनी का
सुनने का
ना मिला था कोई मौका...

कर डाले थे
इक दिन  बन्द मैंने
घर के दरवाज़े और खिड़कियां
शांत गहन अंधकार में
पाई थी मैंने
स्वयं की नाना झलकियां......

कर सकूँ विदा
अनचाहे अतिथियों को
प्रयास यही अब मेरा है
अभीष्ट है मिलना स्वयं से
जब तक इस घर मेरा डेरा है.....

रविवार, 26 मई 2019

इश्क़ में मुझसा कोई डूबा नहीं था.....


****************
दिल की गलियों से कोई गुज़रा नहीं था
फिर भी ये कूचा कभी सूना नहीं था .....

सारी दुनिया छोड़ के चाहा था उसको
थी मैं उसकी, वो मगर मेरा नहीं था.....

सब सवालों का था चुप ही इक जवाब
कुछ तो था उसमें जो मुझ जैसा नहीं था....

इश्क़ तुमसे कुछ ज़ियादा कर लिया था
अपना कोई और तो झगड़ा नहीं था.....

वो ही वो है हर तरफ देखूँ जिधर
इश्क़ में मुझसा कोई डूबा नहीं था...

दर बदर ढूंढा किये जिसको मुसल्सल
मुझमें ही था वो कहीं खोया नहीं था.....

गुरुवार, 23 मई 2019

बाहोशी की दौलत ले कर ..


###########

कितने अल्हड़ थे वो
लड़खड़ाते,दीवाने ,मचलते दिन
घड़ी की सुइयों से हटकर
बेपरवाह मस्ती की हस्ती के दिन,
कूदफाँद और भागदौड़
खेल बचपन के चपल  सुहाने,
गहरायी तक दिल में बसते
टूटते जुड़ते वो याराने,
पल में लड़ना और झगड़ना
पल पल में वो पक्की यारी
सतरंगी थी बड़ी सुहानी
अपनी नन्हीं दुनिया न्यारी,

जाने कहाँ गए वो दिन ......!!!

कैशौर्य की आह! रंगीं फ़िज़ाएँ
शोख़ी बहुतेरी ले आयी,
बाग़ी सपनों ने ले ली थी
जोश भरी कोमल अँगड़ायी,
अनायास खुद में खो जाना
ना जाने कहाँ गुम हो जाना
बिना बात ही हँसना गाना
सोच सोच यूँ ही मुस्काना,
धड़कन दिल की डूब प्रीत में
मधुरिम मधुरिम गीत  सुनाती
अनदेखा अनजाना किंतु
सच्चा कोई मीत बुलाती ,

हाय गुलाबी से वो दिन ...!!!

आयी जवानी सुनो कहानी
जीवन ने ये पत्ते खोले,
लगा ले बाजी इस महफ़िल में
बार बार ये मनुआ बोले,
बेपरवाह रह परिणामों से
हार जीत की क्यूँ कर फिक्र
कौन खेल सका शिद्दत से
उसके कौशल का ही ज़िक्र,
हम बन ना पाए हाय खिलाड़ी
रह गए हो कर निपट अनाड़ी
किन्तु कुशल कहाँ थे हम
पहचान न पाए क्यूँ पगलाए
खुशियों को  समझा था ग़म,

कुछ तो सिखा गए वो दिन ....!!!

साथ हमारे चलते चलते
कदम वक़्त ने बढ़ा लिए हैं,
जाने अनजाने उसने तो
पाठ जीस्त के पढ़ा दिए हैं,
दृढ़ पग बढ़ते रहे निरंतर
चलते चलते ठोकर खा कर,
मरहम लगी रिसती चोटों से
सीधी साँची सीखें पा कर
पथ पर हैं अब बढ़े जा रहे
बाहोशी की दौलत ले कर ,
स्पष्टता है राह दिखाती
चले स्वीकार्यता साथी हो कर ,

सिमट गए सब बीते दिन
कहीं नहीं खोये वो दिन  .......!!!

मंगलवार, 14 मई 2019

ज़िद्द.....


*************
१)
ठानी है 
गर ज़िद्द तुमने 
के साथ नहीं अब 
चलना है,
ज़िद पर कायम हैं
हम भी 
हर मोड़ पे 
तुमसे मिलना है ....

२)
जीवन के 
इन रस्तों में
किसी ज़िद्द को 
ठौर नहीं होता,
सफ़रे वफ़ा में 
साथ हैं हम
इसमें कोई 
मोड़ नहीं होता......

सोमवार, 13 मई 2019

पिघला दिया है मुझको ......


############
गमक जाती हूँ
सोंधी मिट्टी सी
तेरी यादों की
शीतल फुहार से
वरना
बदगुमानियों ने मेरी
ज़र्रा ए खाक
बना दिया है मुझको.....

हटता नहीं
तेरा एहसास
एक लम्हा भी
मेरे ख़यालों से
हुआ है जादू कोई
फूँका है मंतर
या कोई मख़्फ़ी तावीज़
बंधा दिया है मुझको.....

धड़क रहा है सीने में
बन के दिल
जो शख़्स
हर लम्हा ,
वो मेरा कोई नहीं
दुनिया ने बारहा
बता दिया है मुझको ....

जमी थी बर्फ़
जज़्ब हुए
अश्क़ों की
सर्द से वजूद पर
किस तमाजते सरगोशी ने
दफ़अतन
पिघला दिया है मुझको ......

मायने:
मख़्फ़ी=अदृश्य, छुपा हुआ
बारहा-बार बार
तमाजते सरगोशी - फुसफुसाहट की गर्माहट
दफ़अतन=अचानक

शुक्रवार, 10 मई 2019

छोटे छोटे एहसास


*************

कहने को दूर हो चले तुमसे
इक अजब दिल में बेक़रारी है

तुझमें खो कर खुदी मैं भूल गयी
इश्क़ का यूँ ख़ुमार तारी है .....

सोमवार, 6 मई 2019

अनाम सा ......!!!


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निभाते हुए
अनेकों रिश्ते
ढल कर अलग अलग किरदारों में
हो जाता है गुम
वजूद ही खुद का
भूल ही जाता है मानव
मूल स्वरूप तक अपना...

लेते ही जन्म
जुड़ जाते हैं रिश्ते बहुतेरे
होती है पहचान जिनसे
हमारे दुनियावी वजूद की
होते हैं निर्भर हम
उन्ही रिश्तों पर
जानने समझने बातें दुनियावी....

जुड़ते जाते हैं
इन्ही रिश्तों में
कुछ नए नाम
जो चुन लेते हैं हम
पाने को साथ
दुनिया की जद्दोजहद में,
देते हैं सब कुछ अपना
इन रिश्तों को सींचने में....पनपाने में ...

दिखते हैं भरे पूरे हम
रिश्तों की इस महफ़िल में
तभी चुपके से
रूह की गहराइयों में
फूटता है कोई अंकुर
अनदेखा अनजाना बेनाम सा
लिए हुए खुशबू
खुद के वजूद की ....

जीते हुए तमाम रिश्तों को
पहचान लेते हैं हम
फिर से वजूद अपना
इस अनदेखे अनजान
अनाम से जुड़ाव में
जो होता है
खुद का खुद से ही  .....

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

जीते हुए अपने अस्तित्व को


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बर्फीली ठंडक से हुए बेहाल
पातविहीन वृक्षों में
फूट पड़ी हैं कोंपलें नन्ही
बसंत की  नरम आहट के साथ ....

आलम मदहोश सा है
गुलाबी सर्दी का
उतर आया है गुलाबीपन
रूह-ओ-जिस्म में
लगता है यूँ
जैसे सुमधुर सुदर्शन
चेरी ब्लॉसम
डूब रहे हों आँखों के सागर में
या बहे जा रहे हो नयनों की नदिया में.....

विरह और मिलन का मंज़र
दिला रहा है याद प्रिय की,
स्पर्श उड़ते हुए फूलों का
करा रहा है एहसास
दिलबर की छुअन का,
कुनकुनी सर्द हवाएं
बढ़ा रही है बेताबी
होने को नरम आगोश में
सनम के
कर रहा है मुझको व्याकुल
यह दिखता और गुम होता सूरज..

हडसन किनारे
वाटर फ्रंट पर बैठे
लहरों पर खेलती
झिलमिल किरणों के बीच
दिख जाता है एक बिम्ब
मुस्कुराते हुए चेहरे का
बादलों के अम्बार में
डूब जाती हूँ बरबस
उसके होने के सुरूर में
जीते हुए अपने अस्तित्व को.......

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

चेरी ब्लॉसम...



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छाया है खुमार  हवाओं में
"चेरी ब्लॉसम" का,
उमग रही है बयार
लिए हुए मादकता  गुलाबी खुशबू की.....

मन रहा है उत्सव
शहर-ए-न्यूयॉर्क में
चेरी ब्लॉसम के खिलने का
जो देता है संदेश समग्र जीने का
एक पखवाड़े के
अपने जीवन काल के ज़रिए ......

फूटती हैं हरी नर्म कोंपलें नवजीवन की
खिलते हैं पुष्प  श्वेत निर्विकार
हो जैसे कोई निश्छल शिशु
सरल निर्मल हँसी से
मोह लेते हैं मन  देखने वाले का ....

पा लेते हैं  कुछ ही दिनों में
रंग गुलाबी प्यार का
कर रहे हो प्रवेश ज्यूँ यौवन में प्रेमी हो कर
हो उठते हैं आह्लादित देख कर इनको
करने लगते हैं महसूस गुलाबी प्रेम
खुद के भीतर भी ...

पहुंचते हैं पूर्ण विकसित अवस्था को
गहरे गुलाबी रंग में
पा कर परिपक्वता प्रेम की गहराई में
भरते हुए हर क्षण को उमंग से
झूमते झामते नरम गरम हवाओं में ....

हो जाते हैं एकमेव
पत्तों के हरियलपन में  अंतिम सोपान पर
गिरा कर समस्त द्वैत
संजोये हुए संपदा अनुभवों की
सम्पन्नता अनुभूतियों की
ग्रहण कर  हरा रंग समृद्धि का...

क्यों ना लें जीवन को भी हम
इन फूलों की तरह
जो हो जाते हैं  पुराने और धूसर
देते हुए संदेश :
नहीं होता है सौंदर्य कभी भी शाश्वत
बस रह जाते हैं कुछ अवशेष विद्यमान
अल्प समय के लिए ...

सीख सकते हैं न हम जीने की कला
"चेरी ब्लॉसम" के
कुछ दिवस के क्षण भंगुर से जीवन से
जो कर देते हैं उत्साहित मानव को भी
मनाने को उत्सव उनके जीवन का ......

(न्यूयॉर्क, एप्रिल २०१९)

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

अबूझ सवाल

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अपने ख़यालों की
हक़ीक़त है जो
हक़ीक़त में
बस एक ख़याल ही तो है
न मिल सका जवाब
अब तलक जिसका
साथ मेरा तेरा
वो अबूझ सवाल ही तो है.....

बुधवार, 27 मार्च 2019

यक़्ता हम न थे.....


**************
हुनर ए दिलजोई में यक़्ता हम न थे
हुस्ने जाँ के दिल का लख़्ता हम न थे....

बसाया रूह में था जिसकी हस्ती को
उसकी ज़िन्दगी का यक नुक़्ता हम न थे....

टूटते रहे बारहा चोटों से दिल की
बच जाएं बिखरने से यूँ पुख़्ता हम न थे ....

खोजा किये थे खुद को  ग़ज़लों में तेरी
मतला था नज़रे गैर औ' मक़ता हम न थे ....

बिन माँगे होने लगी नवाज़िशें उसकी
अहसासे कमतरी से घिरे शिगुफ़्ता हम न थे ...

(मायने:
हुनर -ए-दिलजोई - दिल को खुश करने वाली बातें करने की प्रतिभा
यक़्ता -अद्वितीय/बेमिसाल
लख़्ता -टुकड़ा /piece
नुक़्ता-बिंदु /small point
बारहा-बार बार
पुख़्ता-मजबूत/strong
मक़ता-ग़ज़ल का पहला शेर
अहसासे कमतरी-हीन भावना/inferiority complex
शिगुफ़्ता-प्रसन्न/विकसित)

रविवार, 17 मार्च 2019

सातवें आसमान पर

बह के
आई है हवा
पूरब से
लायी है
पंखों पे अपने
स्पंदन तेरे
लग गए हैं
पंख अब
ख्वाबों को मेरे
फिर मत कहना
सातवें आसमान पे क्यूँ हो ...!!!!  :)

बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

नैनन रंग बरसाए....


**************

पद्मनाभ,हे मुरली मनोहर
हृदय पुष्प है तुझको अर्पण
छवि में मोरी छवि है तेरी
जब जब देखूँ दर्पण....

मन खिले पलाश सा माधव
तन सिंदूरी छाया
हैं रक्ताभ कपोल जवा सम
ज्यूँ गुलाल छितराया....

हो प्रत्यक्ष हे!श्याम सांवरे
हरो वेदना मोरी
फागुन बिखरा चहुँ दिसा में
चुनरी मेरी कोरी....

फीकी तुझ बिन होरी कान्हा
रंग न कोई भाये
दरस मिले गोविंदा का जब
नैनन रंग बरसाए.....

द्वैत मिटे अद्वैत घटे अब
रोम रोम हर्षाओ
प्रीत में केशव रंगो स्वयं को
मुझ में तुम ढल जाओ.....

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

जीने का सहारा क्यूँ है

#########
तू नहीं फिर भी तेरा ,हर सिम्त नज़ारा क्यूँ है
हर शै में झलकता ,तेरे दिल का इशारा क्यूँ है ......

दिल बहलता ही नहीं ,लाख मनाऊँ इसको
पूछता मुझसे ही ,के दूरी ये गवारा क्यूँ है .....

फ़ैसला दुनिया का ,के तू कुछ नहीं है मेरा
मेरी हर साँस पे फिर ,नाम तुम्हारा क्यूँ है .....

देख के एक झलक ,मुस्कुरा उठते हैं  लब
आतिशे जज़्बात भड़कने का ,तू शरारा क्यूँ है .....

काम दुनियावी, बदस्तूर निभाये जाते हैं
संग लम्हों का बना,जीने का सहारा क्यूँ है ....

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

बीज है विद्रोह.....


************
बीज है विद्रोह
बदलाव का
समेटे हुए
असीम संभावनाएं स्वयं में,
दबा होता है वो
मानव मन की गहराईयों में
संस्कारों,व्यवस्थाओं, मान्यताओं,
शास्त्रों की परतों में
उठा सकता है
प्रश्न प्रत्येक प्रतिकूलता पर
हो कर जागृत
त्वरित एवं तत्पर....

सजग हो यदि विद्रोही
अन्तस् से उठते
विरोधी सुरों के लिए
दे सकता है दिशा
अपनी सोचों को
जो तोड़ सकती है
जड़ता को
करती है प्रहार
व्यर्थ मान्यताओं पर
ला सकती है बदलाव
यथास्थितियों में
समग्र की बेहतरी के लिए 
घटित कर
क्रांतियों को....

दे देता है यही विद्रोह
मार्ग अराजकता को
हो कर दिशाहीन अहंकारी
भटकता हुआ यत्र तत्र
बन कर संकीर्ण
और खुदगर्ज़
उठा कर विरोध को
सिर्फ विरोध के लिए
या खुद को सही
साबित करते हुए
अपनी क्षुद्र भूलों पर
पर्दा डालने के लिए
बिना जाने समझे उसके
विस्फोटक परिणामों को......

विद्रोह है
सहज स्वभाव
मानव का,
विवेकपूर्ण आकलन
सजगता
स्पष्टता
और
स्वीकार्यता
देती है
सकारत्मक और रचनात्मक
स्वरूप उसको
करके परिष्कृत
स्वयं के अंतर को.....

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

बस बात अपने संग की


*************
सुलगती है दिलों में
अधूरी सी बात
अधूरी मुलाकात
दे दें ना हवा
साँसों की
भड़क उठें शोले
हो जाये फ़ना
अधूरापन सारा
हो मुक़म्मल
हर बात
हर मुलाकात अपनी.....

पसरी है निगाहों में
अधूरी सी आस
अधूरी रही प्यास
बरसा दें ना बादल
नेह का
भीग जाए अंतस
बुझ जाए प्यास
पूरी हो हर आस
हो पुरसुकूँ हयात अपनी...

कर देती है
मन तन पावन
अगन हवन की
जल धार गंग की,
हो जाएं हम कुंदन
हवन में तप कर
या बहें सरस
हो कर तरल
बस बात अपने संग की....

गुरुवार, 10 जनवरी 2019

सांझे से हम

छोटे छोटे एहसास
***************
हँसी तेरे होठों की
खिलती है मेरे वजूद में
कसक मेरे दिल से उठ
छलकती है तेरी पलकों पे
ये सांझे से दुख
ये सांझी सी खुशियां
और सांझे से ख्वाब तेरे मेरे
हो गए हैं न सबब
जीने का अपने ......

पराया तो नहीं था


###########

दिल को ऐसे कभी कोई, भाया तो नहीं था
एक पल को भी वो लगा,पराया तो नहीं था...

हमख़याल हमनज़र तो थे हमसफ़र हो चले
मंज़िल-ए-मक़सूद में बदलाव, आया तो नहीं था .....

घुल गईं रूहें खो कर वजूद जिस्मों का
जुदा एक दूजे से अब कोई ,साया तो नहीं था.....

कशिश मोहब्बत की खींच लायी या रब
तेरे दर पर मुझे और कोई ,लाया तो नहीं था ......

सात समंदर पार हों या नज़र के सामने
करीब दिल के इतना किसी को, पाया तो नहीं था .....

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

अर्पण तुझको ए मीत !!...




##############
पुष्प अक्षरों के
चुन चुन कर
भावों के धागे में
गुंथ कर
सृजित हुआ
जो गीत ,
अर्पण तुझको
ए मीत !!!.....

देश काल
पद नाम
सकारे,
नहीं प्रभावी
मध्य हमारे ,
जोड़ा हमको
इक अनाम ने
व्यर्थ हुई
हर रीत ,
अर्पण तुझको
ए मीत !!!....

हर पल जीते
साथ यूँ अपना
अंतराल तो
बस एक सपना
मापदंड से परे
घटित हुई
तेरी मेरी प्रीत ,
अर्पण तुझको
ए मीत !!!....

वरदान तुझे
विस्मृति का
अभिशाप मुझे
स्मृति का
वरदान छुपा
अभिशापों में
ज्यूँ छुपी
हार में जीत
अर्पण तुझको
ए मीत !!!......

रविवार, 6 जनवरी 2019

खुशियों का आगाज़ सुनो !!


########
सर्द रातों में
कोहरे की चादर से
ढके माहौल को
धुंधलाती आँखों के परे
महसूसते हुए
होती है सरगोशी अक्सर
कानों में
"मेरी आवाज सुनो"!

यूँ बदहवास बेचैन सी
ढूंढती हो किसे
डाले हुए बोझा
अपने अहम का
दूसरों के वहम का,
कभी तो लौटो
जानिब खुद के,
इस बोझ तले दबे हुए 
"मेरे अल्फ़ाज़ सुनो"!!

ओढ़ लिए हैं क्यों
आवरण,
दूसरों की पसंद के,
नकली फूलों सी सजी हो
किसी गुलदान में,
खिलने दो ,बिखरने दो
गुंचा-ए-रूह को
ना मुरझाओ यूँ
"मेरा एतराज़ सुनो"!!

गुनगुना लो खामोशियों को
गूंज उठे हर सिम्त
सुर तुम्हारे होने का
थिरकते हुए
धड़कनों की ताल पर,
फड़फड़ा कर पंखों को अपने
छू लो न आसमाँ
"मेरी परवाज़ सुनो"!!!

ए मेरी हमनफस,
ए हमनशीं !!
परों सी हो के हल्की
बारिश की बूंदों सी
हो के तरल
थाम के हाथ मेरा
जीस्त का राज़ सुनो
दर्द का साज़ सुनो
खुशियों का आगाज़ सुनो
"मेरी आवाज सुनो"!!!

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

"होना" मेरे होने में


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उकेर दी हैं
उस निपुण ने
लकीरें हथेलियों पर मेरी ,
लिख दिए है
खाते कई
देना पावना के
मिलन बिछोह के
खोए पाए के ,
जाने कितनी सदियों से
चुका रही हूं कर्ज़
कुछ उतरते है 
कुछ नए चढ़ जाते हैं ....

छुपा देता है
हर जन्म में
बड़ी ही निपुणता से
तुम्हें इन लकीरों में,
दिखते नहीं
फिर भी
तुम्हारे होने का एहसास
करता है पूर्ण
अस्तित्व को मेरे ,
झलकता है
यह अनदेखा
अनजाना सा
'होना'
मेरे होने में ....

समझ जाती हूँ मैं
शाश्वत है
मिलन अपना
होते हुए मुक्त
ऋण बंधनों से.....