मन के भावों को यथावत लिख देने के लिए और संचित करने के लिए इस ब्लॉग की शुरुआत हुई...स्वयं की खोज की यात्रा में मिला एक बेहतरीन पड़ाव है यह..
मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019
ओ रंगरेजवा
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ओ रंगरेजवा !
रंग दीनी किस बिध
चूनर तूने कोरी रे ,
दिठे मैली
जग को चुनरिया
जुग बीते ना धोई रे ,
एक बावरिया
बिसार के जगति
रंग तोहरे मां खोई रे,
मैली थी जहँ
धोया जबनि
बहा रंग
तोहरे इसक का रे
चाक जहँ थी
तहँ सी लई हम ने
सूत हमरे नेह का रे.....
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