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शरद की गुलाबी चादर में लिपटा
स्निग्ध धवल सुधाकर
लिए है मादकता
अपने मिलन के पलों की..
रुपहली चांदनी में
कलकल करती नदिया तीरे
दिखते दो बदन
पिघल रहे थे
चंद्र किरणों की तपिश से,
सरिता के शीतल नीर की छुअन
कर रही थी प्रज्ज्वलित
अगन हृदय में ,
प्रतिबिम्ब मयंक का
झिलमिलाते जल में
लग रहा था ज्यूँ
स्वयं निशापति
उतर आये हैं झूम कर
चूमने युगल पाँवों को..
छुए बिना देह
उतर गए थे
हम रूहों में एक दूजे की
गमक रहा है वजूद
तब से
रात की रानी की तरह,
दैदीप्यमान है आभामंडल अपना
समा जाने से हममें
शरद पूनो के चाँद का.....
शरद की गुलाबी चादर में लिपटा
स्निग्ध धवल सुधाकर
लिए है मादकता
अपने मिलन के पलों की..
रुपहली चांदनी में
कलकल करती नदिया तीरे
दिखते दो बदन
पिघल रहे थे
चंद्र किरणों की तपिश से,
सरिता के शीतल नीर की छुअन
कर रही थी प्रज्ज्वलित
अगन हृदय में ,
प्रतिबिम्ब मयंक का
झिलमिलाते जल में
लग रहा था ज्यूँ
स्वयं निशापति
उतर आये हैं झूम कर
चूमने युगल पाँवों को..
छुए बिना देह
उतर गए थे
हम रूहों में एक दूजे की
गमक रहा है वजूद
तब से
रात की रानी की तरह,
दैदीप्यमान है आभामंडल अपना
समा जाने से हममें
शरद पूनो के चाँद का.....