छलांग
आध्यात्म में
डूब कर
वियोग की गहराई में
या
पा कर
मिलन की ऊंचाई को
होती है जहां
ध्यान की प्रक्रिया
घटित ,
स्वयं को पहचान कर
किन्तु !!
लेना होगा
हर कदम
परिपूर्ण सजगता से
हमको ,
दोनों ही तरफ़
ले जाती हुई
पगडंडियों पर ...
घिरी होती हैं जो
अनजान ,
अँधेरी ,
खाईयों से ,
संभव है तभी
"अप्पो दिपो भव:"
का फलीभूत होना ....