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कठिन बहुत ये दौर सखी री..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
प्रेम से यूँ पहचान करा कर ,
कहाँ गए चितचोर सखी री !!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
ना जाने आंसू इतने ,ये नैन
कहाँ से भर भर लाते
मन के संवेगों में कितने
दृश्य हैं मिटते बनते जाते
चले ना कोई जोर सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
हर पल मैं जी लेती उनको
बसे हैं वो धड़कन में मेरी
दिखते ,पलक मूँद जो लेती
हों भले दूर अखियन से मेरी
भाए कुछ ना और सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
यही तपस्या है अब मेरी
कुंदन बनूँ विरह में जल कर
आयें जिस पल वो द्वारे मेरे
अर्पण कर दूं , मन निर्मल कर
पास नहीं कुछ और सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
कठिन बहुत ये दौर सखी री...!!