गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

दो क्षणिकाएं .....

साजिश ..

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शब्द लड़े ,
बात बढ़ी ,
घुटे भाव
और
छूटा साथ ...
साजिश में
फंस
अहम् की
देखो
हम बैठे
अब
रीते हाथ.....

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क्यूँ होता है ऐसा....

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रखता नहीं
महत्व
जो ,
कुछ भी
दरमियाँ ...
देता
वही
उजाड़
क्यूँ
रिश्तों का
गुलसितां

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर क्षणिकाएं! मन के भाव को व्यक्त करती।

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  2. सुंदर भाव प्रबल क्षणिकाएं .....!!

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  3. दोनों क्षणिकायें सच के आस पास हैं.
    बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.

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  4. पहला वाला ज्यदा बेहतर लगा.......सुन्दर |

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  5. दोनों क्षणिकाएं सशक्त .....पहली कुछ ज्यादा अच्छी लगी

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  6. बहुत सुंदर क्षणिकाएं ...अद्भुत

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