गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

दो क्षणिकाएं .....

साजिश ..

####

शब्द लड़े ,
बात बढ़ी ,
घुटे भाव
और
छूटा साथ ...
साजिश में
फंस
अहम् की
देखो
हम बैठे
अब
रीते हाथ.....

*******************

क्यूँ होता है ऐसा....

####

रखता नहीं
महत्व
जो ,
कुछ भी
दरमियाँ ...
देता
वही
उजाड़
क्यूँ
रिश्तों का
गुलसितां

9 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

बहुत शानदार क्षणिकायें।

मनोज कुमार ने कहा…

सुंदर क्षणिकाएं! मन के भाव को व्यक्त करती।

Anupama Tripathi ने कहा…

सुंदर भाव प्रबल क्षणिकाएं .....!!

दीपक बाबा ने कहा…

एक शब्द.......... शानदार.

विशाल ने कहा…

दोनों क्षणिकायें सच के आस पास हैं.
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.

रजनीश तिवारी ने कहा…

bahut badhiya kshanikayen .

बेनामी ने कहा…

पहला वाला ज्यदा बेहतर लगा.......सुन्दर |

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

दोनों क्षणिकाएं सशक्त .....पहली कुछ ज्यादा अच्छी लगी

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत सुंदर क्षणिकाएं ...अद्भुत