मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

पतझड़ के पीले पात ...

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हो जाने दो
उर्वरक
पतझड़ के
पीले पत्तों को
धरा में
उपस्थित
जीवन के
सहज
प्रस्फुटन के लिए...

इक्कठा कर
इन सूखे झरे
पातों को
क्यूँ देते हो
सम्भावना
किसी
नन्ही सी
चिंगारी को
मिलते ही
हवा
दावानल
बनने के लिए

11 टिप्‍पणियां:

  1. चंद शब्दों में इतने गहन भावों को पिरोना,यह तो कमाल है.मुदिता जी ईश्वर की असीम अनुकम्पा है आप पर जो ऐसा दिल और दिमांग आपने पाया.
    आपकी खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.

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  2. पीले पत्तों को उर्वरक बनने की बहुत अच्छी सोच ..सुन्दर रचना

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  3. शायद विचार भी ऐसे ही होते हैं.... नन्हीं सी चिंगारी मिलते ही दावानल बन जाते है.....

    बेहतरीन भावों को संजोये हुए अच्छी कविता.

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  4. मुदिता ...........अच्छा लगा पढ़ कर.......इतनी गहरी बात सीधे सरल शब्दों में आपने कह दी है.........साधुवाद

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  5. हो जाने दो उर्वरक.. पतझड़ के पीले पत्तों को.. धरा में उपस्थित जीवन के सहज प्रस्फुटन के लिए...

    बेजोड़ ....!!!अनमोल गहन भाव ...!!
    उचित दर्शन जीवन का ....!!
    बहुत अच्छी रचना .बधाई .

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  6. बहुत गहन पोस्ट है......आखिरी पंक्तियाँ बेजोड़ लगी.....

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  7. इसी से जीवन का सतत क्रम चलता रहेगा। गहन जीवन दर्शन।

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  8. कुछ शब्दों में इतनी गहन बात...बहुत सशक्त प्रस्तुति

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