शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

विषम....(आशु रचना )


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जब तक विषम ना होता जीवन
मानव ना इंसाँ बन पाता
तूफानों से लड़ कर ही तो
वृक्ष घना सीधा तन पाता

दुक्खों से ना हार मानना
धैर्य बड़ा है प्यारा साथी
संभावनाएं तेरे भीतर की
घड़ी विषम ही तो बतलाती

उन्ही विषम परिस्थितयों में
जी कर हम शिक्षा ये पाते
प्रेम मैत्री करुणा वाले
भाव सदा दुःख हर ले जाते



2 टिप्‍पणियां:

कुमार संतोष ने कहा…

दुक्खों से ना हार मानना
धैर्य बड़ा है प्यारा साथी
संभावनाएं तेरे भीतर की
घड़ी विषम ही तो बतलाती

बिलकुल सही विषम परिस्तिथियों में ही धैर्य की पहचान होती है !
सुंदर रचना बधाई !

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy ने कहा…

“अगर विषम न होता जीवन
मानव इंसाँ न बन पाता
तूफानों से लड़कर ही तो
वृक्ष घना सीधा रह पाता”
मैंने सीधा तन पाता नहीं लिखा है क्योंकि अगर पेड़ तन कर खड़ा हो तो टूट जाता है. इसमें लचक हो तो वह तूफानों से लड़ भी सकता है. किसी शायर ने कहा है...
गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो
आंधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा. आपकी लेखनी लाजवाब है अतः इसे किसी प्रशंसा की आवश्यकता नहीं है.