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पुष्प अक्षरों के
चुन चुन कर
भावों के धागे में
गुंथ कर
सृजित हुआ
जो गीत ,
अर्पण तुझको
ए मीत !!!.....
देश काल
पद नाम
सकारे,
नहीं प्रभावी
मध्य हमारे ,
जोड़ा हमको
इक अनाम ने
व्यर्थ हुई
हर रीत ,
अर्पण तुझको
ए मीत !!!....
हर पल जीते
साथ यूँ अपना
अंतराल तो
बस एक सपना
मापदंड से परे
घटित हुई
तेरी मेरी प्रीत ,
अर्पण तुझको
ए मीत !!!....
वरदान तुझे
विस्मृति का
अभिशाप मुझे
स्मृति का
वरदान छुपा
अभिशापों में
ज्यूँ छुपी
हार में जीत
अर्पण तुझको
ए मीत !!!......
2 टिप्पणियां:
वाह.. बहुत सुन्दर और मनभावन प्रस्तुति...
भक्तिपूर्ण सुंदर पंक्तियाँ..
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