गुरुवार, 10 जनवरी 2019

पराया तो नहीं था


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दिल को ऐसे कभी कोई, भाया तो नहीं था
एक पल को भी वो लगा,पराया तो नहीं था...

हमख़याल हमनज़र तो थे हमसफ़र हो चले
मंज़िल-ए-मक़सूद में बदलाव, आया तो नहीं था .....

घुल गईं रूहें खो कर वजूद जिस्मों का
जुदा एक दूजे से अब कोई ,साया तो नहीं था.....

कशिश मोहब्बत की खींच लायी या रब
तेरे दर पर मुझे और कोई ,लाया तो नहीं था ......

सात समंदर पार हों या नज़र के सामने
करीब दिल के इतना किसी को, पाया तो नहीं था .....

1 टिप्पणी:

Anita ने कहा…

खूबसूरत अहसास