जला था दीपक लगातार यूँ ,हो गया महत्वहीन
अपेक्षित था जो प्रेम स्वजन से, ना पाया वह दीन
फिर भी घर को रोशन करता धरम निभाता अपना
क्षीण थी बाती ,तेल शून्य था , ज्योति बन गयी सपना
तभी कोई अनजान मुसाफिर , छू गया सत्व दीपक का
भभक उठी वह मरणासन्न लौ,भर गया तेल जीवन का
घर व मन का कोना कोना ,ज्योति से तब हुआ प्रकाशित
दीपक में किसकी बाती है , तेल है किसका, सब अपरिभाषित
निमित्त बना कोई ज्योति का,हुआ प्रसारित बस उजियारा
यही तत्व है, दूर करो सब, मेरे तेरे का अँधियारा
1 टिप्पणी:
यह देखें, आपके कामलायक है Dewlance Web Hosting - Earn Money
यह आपके बहुत काम लायक हो सकता है :)
हिन्दी ब्लागर!
एक टिप्पणी भेजें