दिल के ज़ख्मों का नज़ारा कैसे करूँ
दर्द-ए-सागर से किनारा कैसे करूँ
बहता है सफीना मेरा,मौजों के इशारे पर
पतवार तेरे हाथों में,गवारा कैसे करूँ
नज़रों से बयां होती ,हर बात मेरे दिल की
देखे न तू मुझको,इशारा कैसे करूँ
हर अश्क छुपाया है,नज़रों से तेरी जानम
सितम जज़्बात पे अपने,गवारा कैसे करूँ
कहने को बहुत कुछ है ,खामोश जुबां लेकिन
जज़्बों को मैं लफ्जों का,सहारा कैसे करूँ
गुज़रे हुए वो लम्हे हासिल थे जिंदगी का
खो कर उन्ही लम्हों को,गुज़ारा कैसे करूँ
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1 टिप्पणी:
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल....बधाई
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