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तेरे ख़यालों में ज़ेहन को, गिरफ़्तार करा रक्खा है
आज़ादी पे ख़ुद अपनी, पहरेदार बिठा रक्खा है ....
खाई है कसम उसने, ना देखने की मुझको
तस्वीर मेरी को मगर ,सीने से लगा रक्खा है .....
जताते हो तुम ऐसे, के हम कुछ नहीं तेरे
नज़रे दुनिया से मगर, दिल में छुपा रक्खा है.....
वादा था मिलेंगे ना, यक बार भी अब हम
साँसों में एक दूजे को ,अब भी बसा रक्खा है.....
मुझको भुलाने वाले ,तेरी यादों का सितम कैसा
इक तस्सवुर ने तेरे,मेरी रातों को जगा रक्खा है.....
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