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नवाजिश करम और इनायत तेरी
तुमको जीना हुआ इबादत मेरी ...
हँसी होठों पे दिल में दर्द लिए
क़ाबिले दाद है लियाकत मेरी ...
रोकना कश्ती को ना है बस में उसके
मौजे सागर से अब है बगावत मेरी ...
लाख आगाह किया वाइज़ ने मुझको
डूबना इश्क में ठहरी थी रवायत मेरी....
हर इक इल्ज़ाम पे सर झुकता है
देगी गवाही खुद ही सदाक़त मेरी...
नाम शामिल था वफादारों में मेरा
आँखों में छलक आयी अदावत मेरी...
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