मंगलवार, 15 जनवरी 2013

नृत्य जीवन का ....


मरघट की
शांति ,
अमन-ओ-सुकून नहीं,
सन्नाटा है ,
देख कर जिसे
होने लगता है
महसूस,
संसार है असार
और
भागने लगता है
इंसान
ज़मीनी सच्चाइयों से ....

हारे हुवों को
मौत में ही
दिखता है
अंतिम सच
क्योंकि
मर के ही
मिलता है
छुटकारा
हार के
एहसासात से..

मौत को
जश्न बनाना,
शमशान का
तांडव नहीं,
नृत्य है
जीवन का ,
सराबोर
सब कलाओं
भंगिमाओं
और
भावों से ...

पड़ती है जब
थाप मृदंग पर
हो उठते हैं
सब साज़
झंकृत
जुड जाता है
नाद से अनहद
और होती हैं
प्रस्फुटित
राग-रागिनियाँ.....

चलायमान मन
हो जाता है स्थिर,
होता है समाहित
अखिल अस्तित्व
चेतन्य में,
आरोह
और
अवरोह के
क्रम में
हो जाता है घटित
अद्वैत,
तज कर
द्वैत को ....

2 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

अनन्त यात्रा के अनन्त पडाव मे यात्री की भाव भंगिमायें ही उसके नृत्य को रेखांकित करती हैं।

abhi ने कहा…

सत्य!