शनिवार, 28 जनवरी 2012

रूपांतरण...


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निखिल निशा
जल-जल
तम को निगल
बना काजल
हुई सफल
यह लौ दीये की...


तपा और बना
अँधेरा
अंजन नयन का,
पाषाण सुरभित
सहा जब
धर्षण चन्दन का,
पंकज निर्लिप्त
पा कर आधार
मैले कीचड का,
सम गंगाजल
नीर बना जो
धोवन प्रभु-चरण का....


शूलों को त्याग
पुष्प हृदय उच्छेद
हुआ गलहार
बनी निर्दयता
स्वतः
ममता हिये की...

1 टिप्पणी:

Anupama Tripathi ने कहा…

अद्भुत रूपांतरण ...!!
बसंत पंचमी की शुभकामनायें ..