बुधवार, 4 जनवरी 2012

थमा हुआ वक्त....

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देखा था तुमने
वक्त-ए -रुखसत
झाँक कर
मेरी आँखों में
और पढ़ लिया था
सब कुछ जो
रह जाता है
अनकहा हमारे बीच

बिना बोले
हो गया था
घटित संवाद
मध्य हमारे ..

दो जोड़ी
लरजते होंठ
और
दो जोड़ी नम आँखें
मिल कर
घुला गए थे
दो अस्तित्वों को
एक दूसरे में

पा लिया था
अर्थ
अपने होने का
हमने
उस एक लम्हे के
असीम विस्तार में
देखो न !!
थमा हुआ है वक्त
उसी एक लम्हे पर
आज तक....

3 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

कभी कभी वक्त ठहर जाता है...और वही लम्हा ऐसा होता है जब हम जीवन के करीबतम होते हैं..आभार!

Nidhi ने कहा…

द्वैत से अद्वैत होने का वो लम्हा...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

शब्द शब्द बेजोड़ ...वाह...बधाई बधाई बधाई...

नीरज