सोमवार, 5 सितंबर 2011

स्वतंत्रता ...

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नहीं होता है
यदि
सहज विश्वास
किसी को
मुझ पर
तो नहीं है जरूरत
मुझे
उसे बनाने का
प्रयत्न करने की
क्यूंकि ..!!
नहीं खो सकती मैं ,
जीवन को
जीने की
स्वतंत्रता ,
हर पल
उस बनाये हुए
विश्वास के
टूट जाने के
भय में .....

7 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

गहन सशक्त एहसास अंतर्मन के ....

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर भाव और उनकी अद्भुत अभिव्यक्ति ॰

Rakesh Kumar ने कहा…

वाह! मुदिता जी,कमाल की अभिव्यक्ति है आपकी,
सीधी सीधी,सरल सपाट.

मेरे ब्लॉग पर आप आयीं,इसके लिए
बहुत बहुत आभार आपका.

Nidhi ने कहा…

जीवन जीने की स्वतंत्रता सबका अधिकार है..उसे खोकर किसी के विश्वास को कायम रखना ....मुझे नहीं लगता जिसका विश्वास इतना कमज़ोर हो की वो आजादी से जीने न दे...तो उस का टूटना बेहतर .सुन्दर रचना .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

विश्वास करना है तो करो नहीं तो यह दूसरे की प्रोब्लम है :):) सटीक अभिव्यक्ति

Anita ने कहा…

गहन भाव लिए एक सशक्त रचना ! विश्वास स्वयं पर हो ऊपर वाले पर हो तो बाकी सब खुदबखुद होता चला जाता है....

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें

नीरज