जो सुनी , देखी ना जानी ,वो कहानी हो गयी
तुमसे नज़रें क्या मिलीं,धड़कन रूहानी हो गयी
बात कितनी कह दी हमने ,और उसने सुन भी ली
गुफ़्तगू में दो दिलों की ,बेज़ुबानी हो गयी
भेद क्या है प्यार में ,साकार का ,निराकार का
कृष्ण की चाहत में जब ,मीरा दीवानी हो गयी
रक्स उसकी चाल में , आँखों में पैमाने भरे
देख कर उसको खिजां में गुलफ़िशानी हो गयी
हो जुदा नेमत से तेरी ,'मैं' ही मैं करता रहा
मिट गया वो जिसपे तेरी मेहरबानी हो गयी
7 टिप्पणियां:
mit gaya voh........meharbaani hogayi
waah waah maqta to kamaal ka hai ji !
poori gazal main gaa chuka hoon...badhiya dhun ban gayi iski..lekin aapko suna nahin sakta kyonki yahan sirf likhne ki hi suvidha hai
kul mila kar baat ye hai ki maza aa gaya
bahut khoob gazal !
zindabaad !
भेद क्या है प्यार में ,साकार का ,निराकार का
कृष्ण की चाहत में जब ,मीरा दीवानी हो गयी
वाह! बहुत सुन्दर.
मुदिता जी आप मेरे ब्लॉग पर अभी तक भी नहीं आ पायीं हैं.
'सरयू'स्नान के लिए आपका इंतजार है.
बढ़िया ग़ज़ल
हो जुदा नेमत से तेरी ,'मैं' ही मैं करता रहा
मिट गया वो जिसपे तेरी मेहरबानी हो गयी
सचमुच जो मिटने की कला जान गया वह पूरा ही पा गया... बहुत सुंदर गजल और बहुत बहुत बधाई !
हो जुदा नेमत से तेरी ,'मैं' ही मैं करता रहा
मिट गया वो जिसपे तेरी मेहरबानी हो गयी
वाह बहुत खूब कहा है ...।
आपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......कल ज़रा गौर फरमाइए
नयी-पुरानी हलचल
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
वाह बहुत खूब
एक टिप्पणी भेजें