मंगलवार, 14 जून 2011

हिज्र का बहाना कोई !!

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यूँ तो
फुर्सत नहीं
सुनने को
जहां की बातें ..
ज़िक्र तेरा
मगर
ये वक़्त
रुका देता है ..
नाम सुनते ही
तेरा
कांपने लगते हैं
ये लब ,
इक तसव्वुर
तेरा
पलकों को
झुका देता है ...

मैं कहूँ भी तो
कहूं कैसे
मेरा
हाल-ए- जिगर ,
इश्क
तुझसे ये मेरा,
हो ना
फ़साना कोई ...
कोशिशें
वस्ल की
करने में
सनम ,
मिल ना जाए
कहीं ,
हिज्र का
बहाना कोई ....

मिल ना जाए
कहीं ,
हिज्र का
बहाना कोई ...!!!!

5 टिप्‍पणियां:

monali ने कहा…

Shuruwaati lines pasand aayi magar hijra ka matlab nahi pata isliye shayd kavita ko puri tereh samajh nahi paayi... pls meaning bata dijiyega :)

मुदिता ने कहा…

मोनाली ,
बहुत शुक्रिया आपको पसंद आया और अपने मन से पढ़ा...हिज्र का मतलब जुदाई ...आखिरी पंक्तियों का मतलब है कि वस्ल ( मिलन) की कोशिशें करने में कहीं कोई जुदाई का बहाना न मिल जाये ... मतलब उस बहाने को पा कर मिलन की उत्कंठा ही न रहे ... :)

Nidhi ने कहा…

मुदिता......खुदा किसी को कुछ भी दे ये हिज्र के बहाने न दे .........सुन्दर भावाभिव्यक्ति!!

Anita ने कहा…

बहुत सुंदर नज्म इश्क की चाशनी में डूबी हुई !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

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