यूँ तो
फुर्सत नहीं
सुनने को
जहां की बातें ..
ज़िक्र तेरा
मगर
ये वक़्त
रुका देता है ..
नाम सुनते ही
तेरा
कांपने लगते हैं
ये लब ,
इक तसव्वुर
तेरा
पलकों को
झुका देता है ...
मैं कहूँ भी तो
कहूं कैसे
मेरा
हाल-ए- जिगर ,
इश्क
तुझसे ये मेरा,
हो ना
फ़साना कोई ...
कोशिशें
वस्ल की
करने में
सनम ,
मिल ना जाए
कहीं ,
हिज्र का
बहाना कोई ....
मिल ना जाए
कहीं ,
हिज्र का
बहाना कोई ...!!!!
फुर्सत नहीं
सुनने को
जहां की बातें ..
ज़िक्र तेरा
मगर
ये वक़्त
रुका देता है ..
नाम सुनते ही
तेरा
कांपने लगते हैं
ये लब ,
इक तसव्वुर
तेरा
पलकों को
झुका देता है ...
मैं कहूँ भी तो
कहूं कैसे
मेरा
हाल-ए- जिगर ,
इश्क
तुझसे ये मेरा,
हो ना
फ़साना कोई ...
कोशिशें
वस्ल की
करने में
सनम ,
मिल ना जाए
कहीं ,
हिज्र का
बहाना कोई ....
मिल ना जाए
कहीं ,
हिज्र का
बहाना कोई ...!!!!
5 टिप्पणियां:
Shuruwaati lines pasand aayi magar hijra ka matlab nahi pata isliye shayd kavita ko puri tereh samajh nahi paayi... pls meaning bata dijiyega :)
मोनाली ,
बहुत शुक्रिया आपको पसंद आया और अपने मन से पढ़ा...हिज्र का मतलब जुदाई ...आखिरी पंक्तियों का मतलब है कि वस्ल ( मिलन) की कोशिशें करने में कहीं कोई जुदाई का बहाना न मिल जाये ... मतलब उस बहाने को पा कर मिलन की उत्कंठा ही न रहे ... :)
मुदिता......खुदा किसी को कुछ भी दे ये हिज्र के बहाने न दे .........सुन्दर भावाभिव्यक्ति!!
बहुत सुंदर नज्म इश्क की चाशनी में डूबी हुई !
आपकी पोस्ट की हलचल यहाँ भी है-
नयी-पुरानी हलचल
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