सोमवार, 20 जून 2011

आकाश...(आशु रचना )



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असीम विस्तार है
आकाश का ,
जानती हूँ !
मेरी दृष्टि की
सीमाओं से परे..
किन्तु ,
मेरे
एहसासों की
उड़ान
के लिए
पर्याप्त है
आकाश
हृदय का
तुम्हारे ...
थक कर
सिमट आने को
ज़मीं भी तो
दिल की
दिलाती है न
अपने होने का यकीं
उनको ...!!

3 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

मेरे
एहसासों की
उड़ान
के लिए
पर्याप्त है
आकाश
हृदय का
तुम्हारे ...

बहुत सुंदर एहसास ...!!

Nidhi ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति.....बढ़िया !!

Anita ने कहा…

दिल की धरती और हृदय के आकाश का मिलन अनोखा है, बधाई!