शनिवार, 18 जून 2011

जो तुम न बोले बात प्रिय .....



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दृष्टि से ओझल तुम किन्तु
हो हर पल मेरे साथ प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ...

हृदय मेरा स्पंदित है
इन एहसासों की भाषा से
हो चले हैं हम अब दूर बहुत
हर दुनियावी परिभाषा से
नहीं मलिन कभी हैं मन अपने
दिन हो अब चाहे रात प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ......

भँवरे के चुम्बन से जैसे
बन फूल ,कली मुस्काती है
आ कर दीपक आलिंगन में
बाती जैसे इठलाती है
ऐसे ही छुअन तुम्हारी से
खिल जाता मेरा गात प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ....

तुमने कब दूर किया खुद से
मैं भी कब हुई अकेली थी
धड़कन ,साँसों में कौन बसा
उलझी ये बड़ी पहेली थी
इस प्रेम की बाजी में अपनी
न शह है न ही मात प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ...

17 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

उत्कृष्ट,कमाल की रचना

Nidhi ने कहा…

missing someone............too much,though the person can be felt in each and every part...gud one!

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

मन के अन्तः परिदृश्यों को छूकर, सलोने -सलोने सहलाती औत थपकी देती, अन्तरंग के साथ एक संवाद जिसमे प्यार का उत्कर्ष अपने शिखर को संश्पर्श कर रहा है. कोमल भावनाओं को शब्दों में बांधती एक उत्कृष्ट रचना..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भँवरे के चुम्बन से जैसे
बन फूल ,कली मुस्काती है
आ कर दीपक आलिंगन में
बाती जैसे इठलाती है
ऐसे ही छुअन तुम्हारी से
खिल जाता मेरा गात प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ....


बहुत सुन्दर ...कमाल की पंक्तियाँ ...

vandana gupta ने कहा…

वाह भावो को बहुत सुन्दरता से पिरोया है…………अति सुन्दर रचना।

Anupama Tripathi ने कहा…

मन की कोमल भावनाएं व्यक्त करती ..बहुत सुंदर रचना ..
बधाई.

udaya veer singh ने कहा…

दिल की मुखर अभिव्यक्ति अतिशय प्यारी है साधुवाद जी /

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

हृदय मेरा स्पंदित है
इन एहसासों की भाषा से
हो चले हैं हम अब दूर बहुत
हर दुनियावी परिभाषा से
नहीं मलिन कभी हैं मन अपने
दिन हो अब चाहे रात प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ......

बेहतरीन !!!!!!!
बहुत सुंदर !!!!!!
नि:शब्द !!!!!!!!!

रजनीश तिवारी ने कहा…

bahut sundar rachna

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

bahut khoobsoorat geet
bdhaai ho

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

‘इस प्रेम की बाजी में अपनी न शह है और न मात प्रिये’

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...इस रचना के बारे में जितना कहा जाय वही कम...धन्यवाद और बधाई

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... जब प्रेम और खालिस प्रेम की बात हो तो शै और मात कैसी ...

Neelam ने कहा…

हृदय मेरा स्पंदित है
इन एहसासों की भाषा से
हो चले हैं हम अब दूर बहुत
हर दुनियावी परिभाषा से
नहीं मलिन कभी हैं मन अपने
दिन हो अब चाहे रात प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय .....
.uffffff...speechless.

M VERMA ने कहा…

इस प्रेम की बाजी में अपनी
न शह है न ही मात प्रिय
प्रेम ही तो है जो शह मात से परे है.
सुन्दर रचना

daanish ने कहा…

इस प्रेम की बाज़ी में अपनी
ना शह है, ना है मात प्रिय

हर बात
काव्य अनुरूप
हर अहसास
नज़्म-नुमा

एक मुकम्मल इज़हार
बहुत सुन्दर कृति !!

Sadhana Vaid ने कहा…

आत्मीयता से परिपूर्ण एवं सबके हृदय को स्पंदित करती एक बहुत ही खूबसूरत रचना !
तुमने कब दूर किया खुद से
मैं भी कब हुई अकेली थी
धड़कन ,साँसों में कौन बसा
उलझी ये बड़ी पहेली थी
इस प्रेम की बाजी में अपनी
न शह है न ही मात प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ...

हर शब्द मन को गहराई तक उद्वेलित कर गया ! अति सुन्दर !

Anita ने कहा…

बहुत सुंदर प्रेम रस में डूबी हुई कविता!