वेगवान वो लहर थी जिसमें
पूर्ण समर्पण मेरा था ...
दृढ कदम तुम्हारे उखड़ गए ,पूर्ण समर्पण मेरा था ...
बचने को न कोई डेरा था ...
..
बह निकले तुम फिर संग मेरे ,
उन्मादित धारा में डूब उतर ..
यूं लगा मिटे थे द्वैत सभी
हस्ती निज की थी गयी बिसर..
किन्तु जटिल है अहम् बड़ा
पुनि पुनि कर जाता फेरा था ..
दृढ कदम तुम्हारे उखड़ गए ,
बचने को न कोई डेरा था .
बह निकले तुम फिर संग मेरे ,
उन्मादित धारा में डूब उतर ..
यूं लगा मिटे थे द्वैत सभी
हस्ती निज की थी गयी बिसर..
किन्तु जटिल है अहम् बड़ा
पुनि पुनि कर जाता फेरा था ..
दृढ कदम तुम्हारे उखड़ गए ,
बचने को न कोई डेरा था .
रोका था तुमने फिर दृढ़ता से ,
खुद के यूँ बहते जाने को ,
हो लिए पृथक उन लहरों से
जो आतुर थी तुम्हें समाने को
दृष्टि तेरी में साहिल ही
बस एक सुरक्षित घेरा था ...
दृढ कदम तुम्हारे उखड़ गए ,
बचने को न कोई डेरा था ...
अब बैठ किनारे देख रहे
तुम इश्क की बहती लहरों को,
भीगेगा मन कैसे जब तक
ना तोड़ सकोगे पहरों को !
मैं डूब गयी,मैं ख़त्म हुई
कर अर्पण सब जो मेरा था ....
वेगवान वो लहर थी जिसमें
पूर्ण समर्पण मेरा था ...
खुद के यूँ बहते जाने को ,
हो लिए पृथक उन लहरों से
जो आतुर थी तुम्हें समाने को
दृष्टि तेरी में साहिल ही
बस एक सुरक्षित घेरा था ...
दृढ कदम तुम्हारे उखड़ गए ,
बचने को न कोई डेरा था ...
अब बैठ किनारे देख रहे
तुम इश्क की बहती लहरों को,
भीगेगा मन कैसे जब तक
ना तोड़ सकोगे पहरों को !
मैं डूब गयी,मैं ख़त्म हुई
कर अर्पण सब जो मेरा था ....
वेगवान वो लहर थी जिसमें
पूर्ण समर्पण मेरा था ...
8 टिप्पणियां:
achhi kavita
prastuti ke liye badhai !
अब बैठ किनारे देख रहे तुम इश्क की बहती लहरों को,
भीगेगा मन कैसे जब तक ना तोड़ सकोगे पहरों को !
मैं डूब गयी मैं ख़त्म हुई कर अर्पण सब जो मेरा था ....
वेगवान वो लहर थी जिसमें पूर्ण समर्पण मेरा था ...
भावपूर्ण रचना।
(छंदबद्ध रचना को आप छोटे-छोटे शब्दों में क्यों तोड़ देती हैं। समझने में दिक्क़त होती है और भाव भी टूट-से जाते हैं।)
मनोज जी ,
रचना को फिर से व्यवस्थित किया है..दरअसल तकनीकी ज्ञान न होने के कारण मुझे लगता है कि कहीं कविता कि किसी विधा के साथ अन्याय न कर दूँ..मात्राएं आदि का ज्ञान नहीं मुझे इसलिए छंद बन रहा है या नहीं पता नहीं चलता सहज प्रवाह में लिख देती हूँ जो मन में आता है .. आपके मार्गदर्शन का शुक्रिया ...
्बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
भक्तिरस में सराबोर कर देने वाली पंक्तियाँ !
मुदिता जी रचना में व्यक्त भाव बहुत प्रभावशाली हैं...आप लिखती रहें स्वयं एक दिन छंद बद्ध लिखने लगेंगी...सबसे श्रेयकर कर है अगर आप गा सकती हैं तो गाते हुए लिखें तब लिखने में लय स्वयं आ जाएगी.
नीरज
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
बहुत बढ़िया कविता
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