तृण प्रेम का, बना है संबल
भवसागर की इन लहरों में
मुक्त हो रही मन से अपने
भले रहे तन इन पहरों में
लहरों का उत्पात रहेगा
विचलित किन्तु कर न सकेगा
दीप जला है प्रेम का अपने
तिमिर पराजित हो के रहेगा
डूब के पार हो जाएँ साथी !
प्रेम ही जीवन की है थाती
राह प्रज्ज्वलित करने हेतु
दीपक बिन है व्यर्थ ही बाती
तुम संग मैं हूँ मुझ संग हो तुम
हो मत जाना लहरों में गुम
आयें जाएँ व्यवधान अनेकों
संबल इक दूजे का हम तुम
संबल इक दूजे का हम तुम !!!.......
7 टिप्पणियां:
तुम संग मैं हूँ मुझ संग हो तुम हो मत जाना लहरों में गुम आयें जाएँ व्यवधान अनेकों संबल इक दूजे का हम तुम
संबल इक दूजे का हम तुम !!!.......
rahen saath hum tum , bahut shaktishali sambal
सुन्दर,सुन्दर अति सुन्दर.
"संबल इक दूजे का हम तुम !!!.."
मुदिता जी, आपका मेरे ब्लॉग पर इंतजार है.
ये एह्सास कि कोई हमेशा हमारे साथ है.......ये वाकई अपने आप में बहुत बड़ा संबल होता है........अच्छी-सच्ची रचना.....
तृण प्रेम का, बना है संबल भवसागर की इन लहरों में मुक्त हो रही मन से अपने भले रहे तन इन पहरों में
लहरों का उत्पात रहेगा विचलित किन्तु कर न सकेगा दीप जला है प्रेम का अपने तिमिर पराजित हो के रहेगा
बिल्कुल सही कहा………जब मन से मुक्त हो जाते हैं तब कहीं कोई अन्धेरा घायल नही कर सकता।
डूब के पार हो जाएँ साथी !प्रेम ही जीवन की है थाती राह प्रज्ज्वलित करने हेतु दीपक बिन है व्यर्थ ही बाती ....
कितने कोमल अहसास...बहुत सुन्दर प्रेममयी अभिव्यक्ति..
सुंदर भावाभिव्यक्ति !
जब साथ होता है तो बड़ी बड़ी लहरें भी कुछ बिगाड़ नहीं सकतीं । बहुत सुंदर रचना ।
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