बुधवार, 11 मई 2011

इष्ट तुम्हारा....

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जीवन तो इक बहती धारा
वक़्त न ठहरा ,कभी न हारा

परिवर्तन ही बस अपरिवर्तित
परिवर्तन से ही हुआ विसर्जित

क्यूँ करते संघर्ष व्यर्थ तुम
स्वीकार करो बन के समर्थ तुम

आसक्ति क्यूँ क्षणभंगुर में
मिटा बीज ,पनपा अंकुर में

आज नहीं हैं जब कल जैसा
नहीं रहेगा कल भी ऐसा

दोनों 'कल' ही मिथ्या भ्रम हैं
'अभी' 'यहीं' बस सत्य क्रम है

जो भी शाश्वत और सत्य है
नहीं मिटेगा यही तथ्य है

जियो समग्र हो कर इस क्षण में
मिलेंगे प्रीतम हर इक कण में

मिलन यही अभीष्ट तुम्हारा
पा जाओगे 'इष्ट' तुम्हारा

6 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

संवेदना से भरी मार्मिक रचना.....
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!

विशाल ने कहा…

बहुत ही खूब लिखा है मुदिता जी.

जियो समग्र हो कर इस क्षण में
मिलेंगे प्रीतम हर इक कण में

बस आज ही सत्य है.

Nidhi ने कहा…

मुदिता जी...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति....जो शाश्वत है वो कभी मिटता नहीं इस बात को बहुत सरलता से आपने शब्दों में व्यक्त कर दिया है .......

Rakesh Kumar ने कहा…

जियो समग्र हो कर इस क्षण में मिलेंगे प्रीतम हर इक कण में
मिलन यही अभीष्ट तुम्हारा पा जाओगे 'इष्ट' तुम्हारा

मन अभिभूत हों गया आपकी भक्तिपूर्ण प्रस्तुति से.'इष्ट' को पाना ही जीवन में अभीष्ट मिलन है,जिसके लिए हर क्षण लक्ष्य पर ध्यान रख समग्र जीना होगा.
बहुत बहुत आभार मुदिता जी.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जो भी शाश्वत और सत्य है नहीं मिटेगा यही तथ्य है ... yah satya hamesha rahega

prritiy----sneh ने कहा…

bahut sunder rachna. neh se paripoorna, man bhayi.

shubhkamnayen